Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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इच्छायें

 

सोचता हूँ अगर मैं वश में कर पाता
अपनी इच्छाओं को
मैं भी बन पाता पूर्ण
कुछ इच्छायें बहुत प्रबल हैं
उन पर कर डाला सबकुछ न्योछावर

 

असंतोष बढ़ता है
जब किसी इच्छा में घुटता हूँ
हरपल तिलतिल मरता हूँ
करता रहता हूँ हर पल प्रयास नये

 

शायद किसी जन्म की इच्छा थी
मानव बन इस धरती पर आऊँ
अर्जन करूँ अपना नाम
बडा करूँ कुछ ऐसा काम

 

करके प्रयास जब थकता हूँ
सोचता हूँ रुक जाऊँ थम जाऊँ
ढ़ूँढ़ूँ शांति एकांत में कहीं
फेक आऊँ सब इच्छायें

 

 

 

सुनील मिश्रा "साँझ"

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