Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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इंसान या नास्तिक

 

चाहे शोलोँ मे मुझको जला दो।
चाहे मिट्टी मे मुझको दबा दो।
मेरा कोई नही धर्म मजहब।
इसकी जो चाहो मुझको सजा दो।

 



ऐसा ना हो कि इंसान जागे।
आपके दिल से शैतान भागे।
मुझपे इंसानियत रो पडे ना।
दोस्तोँ मेरी मय्यत छुपा दो।


 


झगडे, दंगो का अँधेरा कम हो।
जुल्म, दहशत से ना आँख नम हो।
धर्म मजहब की खुल जायेँ आँखे।
धर्म मजहब पे बिजली गिरा दो।


 


गीता असलम, रफी को ना मारे।
तुलसी का घर ना कुरआन उजाडे।
खाक हो जाये कुरआन,गीता।
आग सीने मे ऐसी लगा दो।


 


ये बनाते हैँ अपनोँ को दुश्मन।
दाग से सबके भरते हैँ दामन।
मस्जिदोँ मे भी लटका दो ताले।
दीप मन्दिर के चलकर बुझा दो।



 

 

मै नहीँ कोई मुल्ला या पण्डित।
क्युँ करुँ देश को मै विखण्डित।
मै हरिश्चद्र के कौम का हुँ।
मेरे आगे से गीता हटा दो।



 

 

धर्म, मजहब पे क्युँ मर रहे हो।
काम बेकार क्युँ कर रहे हो।
याद रखेगी 'शिव' तुमको दुनियाँ।
देश पर जान अपनी लुटा दो।

 


'शिव'

 

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