Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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इंसानियत की मेरी बीमारी नही जाती

 

इंसानियत की मेरी बीमारी नही जाती।
सिर से मेरी अना ये उतारी नही जाती।

 

है वास्ता हमारा भी रघुकुल से दोस्तोँ।
खाली कभी जुबान हमारी नही जाती।

 

मजबुरीयाँ ले जाती हैँ बाजार मे उसको।
इज्जत गँवाने खुद ही बेचारी नही जाती।

 

राहोँ मे लडकियोँ को सदा घुरने वाली।
आदत हरामजादे तुम्हारी नही जाती।

 

शादी किये बिना ही है होती सुहागरात।
लडकी कोई ससुराल कुँवारी नही जाती।

 

कैसे गुजार देते हैँ कोठोँ पे लोग उम्र।
होटल मे मुझसे रात गुजारी नही जाती।

 

नाहक किसी गरीब की किस्मत बिगाड कर।
किस्मत मेरी ये मुझसे सँवारी नही जाती।

 

 

 

'शिव'

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