Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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इन्साँ के हौसलो को तोडा है तितलियो नेँ

 

इन्साँ के हौसलो को तोडा है तितलियो नेँ ।
अन्धा किया बशर को दौलत बिजलियो नेँ ।

 

 

उल्फत के आसमाँ पे ऐसे चढा है आशिक ।
जैसे उसे सरासर बहकाया सीढीयोँ नेँ ।

 

 

उसे देखकर ही उसपे मर जायेँ जीने वाले ।
उसको सजाया ऐसे रंगो की देवियो नेँ ।

 

 

दिल मे जला के रखा उल्फत रौशनी को ।
हमको डराया कितना नफरत की आँधियो नेँ ।

 

 

शब्दोँ की आँधियोँ से खुद को बचा ना पाया ।
मूझे रोकना तो चाहा मेरे घर की बेणियोँ नेँ ।

 

 

प्यासोँ पे कैसे कोई कर दे रहम की बारिश ।
सागर को पी लिया है सागर की मछलियोँ ने ।

 



तेरी याद की ये जुल्मत मेरी मौत पे तो कम कर ।
मुझको किया है पागल तेरी तेज हिचकियोँ ने ।

 



मै भिगने लगा हूँ उल्फत की बारिशोँ मे ।
मुझपे करम किया है चाहत की वादियो नेँ ।

 



दिल का यकिन मेरे रंग ला गया है देखो ।
पहुँचा दिया फलक तक अन्जान साथियोँ नेँ ।

 



नफरत का जहर खाकर मरने को आ गया ! शिव ! ।
पहुँचा दिया नरक तक नफरत की खुबियो नेँ ।

 

 



! शिव !

 

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