इन्साँ के हौसलो को तोडा है तितलियो नेँ ।
अन्धा किया बशर को दौलत बिजलियो नेँ ।
उल्फत के आसमाँ पे ऐसे चढा है आशिक ।
जैसे उसे सरासर बहकाया सीढीयोँ नेँ ।
उसे देखकर ही उसपे मर जायेँ जीने वाले ।
उसको सजाया ऐसे रंगो की देवियो नेँ ।
दिल मे जला के रखा उल्फत रौशनी को ।
हमको डराया कितना नफरत की आँधियो नेँ ।
शब्दोँ की आँधियोँ से खुद को बचा ना पाया ।
मूझे रोकना तो चाहा मेरे घर की बेणियोँ नेँ ।
प्यासोँ पे कैसे कोई कर दे रहम की बारिश ।
सागर को पी लिया है सागर की मछलियोँ ने ।
तेरी याद की ये जुल्मत मेरी मौत पे तो कम कर ।
मुझको किया है पागल तेरी तेज हिचकियोँ ने ।
मै भिगने लगा हूँ उल्फत की बारिशोँ मे ।
मुझपे करम किया है चाहत की वादियो नेँ ।
दिल का यकिन मेरे रंग ला गया है देखो ।
पहुँचा दिया फलक तक अन्जान साथियोँ नेँ ।
नफरत का जहर खाकर मरने को आ गया ! शिव ! ।
पहुँचा दिया नरक तक नफरत की खुबियो नेँ ।
! शिव !
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