Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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कभी तेजाब फेँकेगे कभी जिन्दा जलायेगे

 

कभी तेजाब फेँकेगे कभी जिन्दा जलायेगे।
कभी पीटेँगे बेदर्दी कभी फाँसी चढायेँगे।

 



ये इनकी बेवकुफी है ये दौलत पर जो मरते हैँ।
मिला जो मुफ्त का ना धन बहु बदनाम करते हैँ।
जरा से धन के लालच मे ये लक्ष्मी को भगायेँगे।



 

 

ये इनके जुल्म और दहशत सहेगी कब तलक बेटी।
गलत रीति-रिवाजो मे रहेगी कब तलक बेटी।
ये इन मासुमोँ को बोलो जहर कब तक पिलायेँगे।



 

 

कोई भी भारतीय नारी सदा इज्जत बचाती है।
ये अपना चाँद सा मुखडा भी घुँघट मे छुपाती है।
ये कब तक बदचलन कहकर के सीता को बुलायेँगे।


 


ये वेहशी हैँ दरिन्देँ हैँ इन्हे इन्सान मत कहिये।
ये कितने ढोँग रचते हैँ इन्हे भगवान मत कहिये।
ये कब तक मुफलिसो की बेटी के खुँ से नहायेँगे।

 

 

'शिव'

 

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