Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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लावइ जे सुख समृद्दि

 

भोजपुरी गीत

 

 

लावइ जे सुख समृद्दि घर मे अइसन ही बहुरिया चाहीऽ ला।
अन्हियार से दुअरा बचल रहे चनवाँ के अजोरिया चाहीऽ ला।

 

 

अचरा से महकत इत्तर हो।
चेहरा परदा के भीत्तर हो।
कउनो ना दाग होखे ओहमा।
सीता के निअन पवित्तर हो।
दुधवा जस साफ रहै दामन गंगा के लहरिया चाहीऽ ला।

 

 

माई बाबु के शान रखे।
सासु ननदी के मान रखे।
जब आवे सजनवा पे आफत।
मन्दिर मे आपन जान रखे।
पुजा मे सदा तल्लीन रहल शरधा के नजरिया चाहीऽ ला।

 

 

बहुरी के पऊँवा भारी सुनीँ।
बच्चन के फिर किलकारी सुनीँ।
आपस मे लडत अऊर झगडत।
बबुअन के गारी मारी सुनीँ।
लईकन से फलल फुलल सँवरल अपना ई दुवरिया चाहीऽ ला।

 

 

पुरुवा के साथ उडे आँचल।
अन्हियार करे ओकर काजल।
अँखियन के एक इशारा पर।
अँगना पर आई घिरे बादल।
मनवाँ के मोर जहाँ थिरकै अइसन गो अटरिया चाहीऽ ला।

 

 

बोली सँग शहद रहे चुवत।
मुखडा पर चान रहे सोहत।
अनपुर्णा हाथ मे बसल रहे।
सुग्घरता पाँऊ रहे धोवत।
ना दोख रहे एगो ओहमा गुनवा के टोकरिया चाहीऽ ला।

 

 

 

 

'शिव'

 

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