Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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माँ बाप

 

उन्हे सारे जमाने मे कोई अपना नही सकता।
जो अपने ही सगे माँ-बाप को दुश्मन समझते हैँ।

 


मोहब्बत से भरी खुश्बु से वो हरदम महकते हैँ।
जो माँ और बाप के कदमो को ही चंदन समझते हैँ।

 


दुवाएँ अपनोँ से पाकर वो जन्नत जीत लेते हैँ।
जो माँ और बाप की सेवा को ही जीवन समझते हैँ।

 


बिना काशी गए उनके हजारोँ पाप कटते हैँ।
जो माँ और बाप के चरणो को ही पावन समझते हैँ।


 

 

उन्हे गहनो की क्या चाहत वो खुद ही हीरे जैसे हैँ।
जो माँ और बाप के आशिष को कुन्दन समझते है।


 

 

दुवाएँ उनकी चलती साँस को रुकने नही देतीँ।
जो माँ और बाप की आवाज को धडकन समझते हैँ।

 


उन्हे सारे जमाने मे कोई भी गम नही मिलता।
जो माँ और बाप के दुख दर्द की तडपन समझते हैँ।

 


दिन ब दिन बढती है रौनक चमकती आँख के उनकी।
जो माँ और बाप की सुरत को मनभावन समझते हैँ।

 

 

 

'शिव'

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