Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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मन के गहन विचार

 

मन के गहन विचारों के
चंद टुकड़े सितारों के
भरके झोली ले जा आज
दिल में उठते अंगारों के

 

 

नाच रही सपनों में ऐसे
एक परी सी कोई जैसे
थिरक रही मंद ध्वनी में
लयबध्ध राग सितारों के

 

 

घर से उठता धुआँ सा
बेमानी मौसम भी है
तेज हवाएँ उल्टी बहती
देखा ज़ुल्म बहारों के

 

 

चली है डोली दुल्हन की
घर उसके साजन की
मन रोता, मुस्कान भी है
पदचाप सुने कहाँरों के

 

 

दे देकर आवाज बुलाया
माझी को समझ ना आया
कुछ नदी की कलकल थी
बाकी शोर किनारों के

 

 

 

सुनील मिश्रा "साँझ"

 

 

 

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