Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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मर्द की मुँछे

 

मर्द की शान बढाती हैँ मर्द की मुँछेँ।
मर्द को मर्द बनाती हैँ मर्द की मुँछेँ।

 




कभी बनके चुलबुल कभी बनके गजनी।
कभी बनके बीग बी कभी बनके रजनी।

हर जगह रौब दिखाती हैँ मर्द की मुँछेँ।
मर्द को मर्द बनाती हैँ मर्द की मुँछेँ।


 


घुरकर आँख दिखाती है मुँछमुण्डो को।
मार के धुल चटाती है सभी गुण्डोँ को।

सबको औकात मे लाती हैँ मर्द की मुँछे।
मर्द को मर्द बनाती हैँ मर्द की मुँछेँ।


 


अपनी मुँछो को बडे ताव से पकड कर के।
भरी महफिल मे सबके सामने अकड कर के।

मुँछमुण्डोँ को चिढाती हैँ मर्द की मुँछे।
मर्द को मर्द बनाती हैँ मर्द की मुँछेँ।


 


नवाबी ठाठ उसके सर पे चढी रहती है।
मुँछ की धार जिसकी सबसे बडी रहती है।

उसी के राग मे गाती हैँ मर्द की मुँछे।
मर्द को मर्द बनाती हैँ मर्द की मुँछेँ।



 

 

जिनकी होती हैँ नत्थुराम के जैसी मुँछे।
उनके आगे तो हिलाते हैँ शेर भी पुँक्षेँ।

अच्छे अच्छोँ को डराती हैँ मर्द की मुँछे।
मर्द को मर्द बनाती हैँ मर्द की मुँछेँ।

 


'शिव'

 

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