Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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मेरे हाथोँ मे इक गुलाब देकर

 

मेरे हाथोँ मे इक गुलाब देकर।
चल पडा वो मुझे जवाब देकर।



चाहता है वो क्या करना साबित।
प्यार मुझको युँ बेहिसाब देकर।



जख़्म सीने का फिर खुरच डाला।
शायरी की वही किताब देकर।



कर दिया रात से मेरा सौदा।
मेरी किस्मत मे आफताब देकर।



सुर्ख आँखोँ मे अश्क के मोती।
क्या मिला गम मुझे जनाब देकर।



 

भुल जाते हैँ मुझे दोस्त सभी।
एक आदत कोई खराब देकर।


 

सेठ जी के महल से इक अबला।
लौट पाई नही हिसाब देकर।



'शिव'

 

 

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