मुझे बना दो मीराबाई मै कान्हा की हो लुँगी।
अपने मन की मैली चादर भक्ति भाव से धो लुँगी।
मिल जायेँ गर मोहन प्यारे किस्मत ही बन जायेगी।
मिले अगर ना किशन कन्हईया मीरा तो मर जायेगी।
मनमोहन की विरह पीर मे चुपके चुपके रो लुँगी।
गिरधारी के प्रेम मे पागल होकर छम छम नाँचुगी।
कान्ह पिया की प्यारी सुरत बिना शरम के बाँचुगी।
कान्हा जी की बनकर दुल्हन घुँघट के पट खोलुँगी।
बनकर मै कान्हा की भक्तन भजन मे ध्यान रमाऊँगी।
प्रभु चरण मे मगन रहुँगी माया मोह भुलाऊँगी।
अपने मन मे किशन की भक्ति के दो दाने बो लुँगी।
याद किशन की पुष्प के जैसे मन मोहक मनभावन है।
किशन की छवि यदि रहे ह्रदय मे ये दुनिया भी पावन है।
लेकर मन मे कान्हा जी को काँटो पर भी सो लुँगी।
भगवन से मै अपनी भक्ति के बदले सब पाऊँगी।
प्रभु जी होँगे मेरे वश मे उन पर रौब जमाऊँगी।
देगेँ सब कुछ प्रेम से गिरधर जो चाहुँगी वो लुँगी।
नटवर लाल की भक्ति को ही बडा खजाना समझुँगी।
जो ना प्रभु की शरण मे आये उसे दीवाना समझुँगी।
दासी होकर भी मै अपने आप को रानी बोलुँगी।
।शिव।
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