Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

ना रखो सर को अपने गैर के कन्धोँ पे ऐ जानम

 

ना रखो सर को अपने गैर के कन्धोँ पे ऐ जानम।
तुम्हे इस हाल मे देखुँ तो दिल का बोझ बढता है।


 

तुम्हे जब देखता हुँ गैर की बाँहोँ मे बलखाते।
जलजला, आग और तुफाँ मेरे माथे पे चढता है।


 

मेरे किस्मत की रेखाएँ मेरी आँखो मे धँसती हैँ।
तु जब भी ज्योतिषा माफिक किसी की शक्ल पढता है।


 

बिना सोचे ही अपने दिल का सौदा कर लिया मैने।
तभी तो दिल भी अब मेरा मुझ ही पर दोष मढता है।


 

तुझे जो चाहिए ये जाँ तो खुलकर माँग ले मुझसे।
चल अब जाने भी दे कातिल क्युँ इतनी बात गढता है।


 

तु अपने हाथ इस तरह किसी के हाथ मे ना दे।
ये तेरे दिल का रुखापन मेरे अरमाँ से लडता है।


 

मुझे जब छोडकर तु खेलती है इन बहारोँ से।
ये मौसम, फुल और सावन मेरी आँखो मे गडता है।

 

।शिव।

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ