Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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पतझड मे सावन देखा है

 

पतझड मे सावन देखा है।
गोरी का यौवन देखा है।

 

जब भी हमने देखा उसके।
चेहरे का दर्पन देखा है।

 

कलयुग की सहमी सीता ने।
रावन ही रावन देखा है।

 

मैने इन आँखो ने लुटते।
इक अबला का तन देखा है।

 

कहता है वो मुझको हीरा।
जिसने मेरा मन देखा है।

 

काँटे हैँ आँखो मे फिर भी।
सपने मे उपवन देखा है।

 

मेरी हर साँसो ने उसकी।
साँसो मे चंदन देखा है।

 

बाबा की बुढी आँखो मे।
मैने भी बचपन देखा है।

 

 

'शिव'

 

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