Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

शिक्षक दिवस

 

गुरू जी, गुरू जी ओ प्यारे गुरू जी।
मेरी जिन्दगी के सहारे गुरू जी।


मै हूँ एक जुगनू यहाँ ज्ञानघर का।
ज्ञान आकाश के चाँद -तारे गुरू जी।

 

मेरे इल्म मे अब कमी आ गई है।
कहाँ खो गये हैँ हमारे गुरू जी।

 

वो शिष्यो से मिलते थे बनकर के बच्चे।
सभी शिष्यजन के दुलारे गुरू जी।

 

गुरू जी ना होते तो मै होता कुडा।
मेरी जिन्दगी को निखारे गुरू जी।

 

वो देते थे निष्पक्ष बच्चोँ को शिक्षा।
किये धर्म-मजहब किनारे गुरू जी।

 

बिना आपके हम अधुरे हैँ गुरुवर।
कहाँ, कैसे जीवन गुजारेँ गुरू जी।

 

ये दौलत. ये पैसा, ये शोहरत ना होगी।
अगर जिन्दगी ना सवाँरे गुरू जी।

 

चला जायेगा छोड. घर-बार ये 'शिव'।
कभी एक दफा तो पुकारेँ गुरू जी।

 

 

 

'शिव'

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