Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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शीशा ए दिल मे अपने चटखने लगा हुँ मै

 

शीशा ए दिल मे अपने चटखने लगा हुँ मै।
दुख दर्द के आँचल से लिपटने लगा हुँ मै।


कुछ दुश्मनोँ के मुँह से भी मैने सुना है कि।
अब दोस्तोँ के दिल मे खटकने लगा हुँ मै।


 

रोटी का इंतजाम और प्यार का रोना।
सर पर हजारोँ गम को पटकने लगा हुँ मै।


 

अब मेरी जिन्दगी का हश्र जाने क्या होगा।
खुशियोँ की नर्म बाँह झटकने लगा हुँ मै।


 

चाहत नगर के हुस्न की गलियोँ को छोड कर।
बस तेरे ख़यालोँ मे भटकने लगा हुँ मै।


दिल मे उबलती बात को कैसे बयाँ करुँ।
कुछ बोलने से पहले अटकने लगा हुँ मै।



घुट घुटके के जान जायेगी मेरी भी दोस्तोँ।
अब जिन्दगी का ज़हर गटकने लगा हुँ मै।


दिल मे पनपते जुर्म के एहसास के चलते।
इल्ज़ाम की शुली पे लटकने लगा हुँ मै।


'शिव'

 

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