तोडेँ हैँ मैने अपने ही शहनाई के सपने।
शर्मिन्दा हो रहे हैँ मेरे भाई के सपने।
क्युँ बेवफा के नाम पे सब कुछ लुटा दिया।
बरबाद कर गये मुझे हरजाई के सपने।
पैदा किया जिसने मुझे और इज्जतेँ बक्शीँ।
क्युँ तोड दिये मैने उसी माई के सपनेँ।
एक शाम की पुरवाई मे लाखो गुनाह हुए।
आयेँ ना फिर कभी किसी पुरवाई के सपनेँ।
रोटी का बन्दोबस्त हो या जिस्म छुपायेँ।
हर लम्हा सताते हैँ ये महगाई के सपनेँ।
कैसे रहुगी जिन्दा मै अम्मा के बिन कहीँ।
मुझे मारते हैँ अम्मा से जुदाई के सपनेँ।
जो प्यार के बदले मुझे देता रहा दगा।
आयेँ ना उसी शख्स की परछाईँ के सपनेँ।
दुल्हन ना बँनुगी कभी ना डोली चँढुगी।
देखेगा कौन भाग्य की ठुकराई के सपनेँ।
होते हुए बरबाद मैने ये भी ना सोँचा।
जोडे थे किस तरह से पाई-पाई के सपनेँ।
राधा सी चपलता ने मेरा घर जला दिया।
बसने लगे हैँ मुझमे मीराबाई के सपनेँ।
'शिव'
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY