Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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उडता है ये दिल का पँक्षी अपने दिल मे आस लिए

 

उडता है ये दिल का पँक्षी अपने दिल मे आस लिए ।

पहूँच ही जायेगा मंजिल तक चाहत का विश्वास लिए ।

 

लोँगो के उपहास से ही तो और भी उन्नति होती है ।

फिक्र ना कर कोई मिल जाये गर तुझ से उपहास लिए ।

 

एक नही तनहा तु जिसने अपने दिल को मारा है ।

घूम रहे हैँ जाने कितने अरमानोँ की लाश लिए ।

 

कहते हैँ दिल मर जानेँ पे इन्साँ भी मर जाता है ।

जिन्दा हूँ मैँ इस दुनिया मे फिर क्यूँ अपनी लाश लिए ।

 

अपनेँ दिल का दुख यारोँ जब अपनोँ मे बँट जातेँ हैँ ।

तनहा हूँ फिर क्यूँ अपनोँ मेँ अपनोँ को ही पास लिए ।

 

प्यार अगर एक फन है तो फिर जाहिल बन कर रहना तुम ।

! शिव ! का दिल बर्बाद हुआ है हुनर प्यार का खास लिए ।

 

 

 

। शिव ।

 

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