Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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वतन याद आया

 

मुझे सबसे प्यारा चमन याद आया।
मुझे मेरा अपना वतन याद आया।



शहीदोँ ने तोडी गुलामी की बेडी।
जवाँ इन्कलाबी सदायेँ भी छेडी।
शहीदोँ से लिपटा कफन याद आया।



वो गिल्ली वो डण्डे वो कुश्ती कबड्डी।
वो सुबह की वर्जिश वो मजबुत हड्डी।
वो मेरा गठीला बदन याद आया।



बेगाने शहर ने निगल डाला मुझको।
जरुरत ने मेरी मसल डाला मुझको।
मुझे फिर से सुरज ग्रहण याद आया।



मोहब्बत मे मरना मोहब्बत मे जीना।
वो अपने सनम के सभी दर्द पीना।
वो सच्ची वफा का चलन याद आया।



 

मुझे मेरी माँ ने पढाया लिखाया।
मुझे जिन्दगी का सबक भी सिखाया।
वो अम्मा का करना जतन याद आया।



मेरी जिन्दगी भी हुई खेल जैसी।
ये दुनियाँ लगे है मुझे जेल जैसी।
खिलौनो को करना दफन याद आया।



वो राखी, मिठाई वो रिश्तोँ का बन्धन।
बहन की दुआ और वो माथे पे चन्दन।
वो बहनोँ को कहना बहन याद आया।



ना अपनो की साजिश ना लोगोँ की रंजिश।
नही थी गुलामी ना ही कोई बन्दिश।
कभी 'शिव' था कितना मगन याद आया।

 

 

 

'शिव'

 

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