Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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प्रभु जी को अपने मनाने चला मै

 

प्रभु जी को अपने मनाने चला मै।
चला अपनी बिगडी बनाने चला मै।




जिन्हे देखकर दिल के गुल हैँ महकते।
बताये बिना जो हैँ सब कुछ समझते।
बिलखते हुए उनकी चौखट पे जा कर।
उन्हे हाल अपना सुनाने चला मै।




मेरे साथ भगवन ने जो कुछ किया है।
उन्होने मुझे आज तक जो दिया है।
मेरे पास जो है उन्ही का समझ कर।
उन्ही पे ही सब कुछ लुटाने चला मै।




भजन और भक्ति मे मन को लगाकर।
चरण मे प्रभु जी के दुनियाँ बसाकर।
प्रभु जी की अपनी दया दृष्टि पा कर।
गुनाहोँ से खुद को बचाने चला मै।




 

मोहब्बत की दुनियाँ को रचने की खातिर।
गलत मोह माया से बचने की खातिर।
अधर्म और पाखण्ड से अब उबरकर।
प्रभु रस मे खुद को डुबाने चला मै।




 

बहुत भ्रष्ट थी मेरे जीवन की पटरी।
सम्भलती न थी पाप की मुझसे गठरी।
बदी और गुनाहोँ से बचने की खातिर।
चला पुण्य थोडा कमाने चला मै।


'शिव'

 

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