Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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माँ, तुम सब कैसे कर जाती हो??

 

 

1
किस तरह जल्दी उठकर,
‘सुबह’ को जगाती हो?

 

किस तरह सूरज को खींचकर,
क्षितिज के धरातल पर लाती हो?

 

किस तरह ख्वाबों के समंदर में गोते लगाते
हम सुवक्कड़ों को ‘सी-शोर’ तक वापस लाती हो?

 

किस तरह इक कप चाय की ‘सिप’,
अपनी उस ममतामयी मुस्कान ‘स्वीट’ से,
हमारी प्रभात को ‘सुप्रभात’ बनाती हो?




किस तरह अपनी कुनकुनी प्रेममयी वर्षा से,
हमारे सारे मैल धोकर,
इक ताज़ी,साफ़-सुथरी जिन्दगी प्रदान कर जाती हो?

 

माँ, तुम सब कैसे कर जाती हो?

 

2
किस तरह हमें अस्त्र-शस्त्र से लैस कर,
बैग में इक ताज़ा-तरीन ‘डिश’ की
भीनी-भीनी सुगंध छोड़कर,

 

हमारे ‘एम्पटी स्टमक्स’ को फिल कर,
हमारी हज़ारों ख्वाहि्शें फुलफिल कर,
हमारे सभी काम कम्प्लीट कर,

 

हमारे सुप्त चंचल मन में
उत्साह और आशा की नवीन किरण भर कर,

 

हमें हमारी मंज़िल तक पहुँचाती हो।

 

माँ, तुम सब कैसे कर जाती हो?

 

 

3
कोई चाहे ‘सोबर फूड’,
कोई माँगे ‘स्पाईसी फूड’,
एक बोले ईस्ट तो दूजा वेस्ट,
आप सभी वैरायटी बनाती हो।

 

कैसे ये टेन्शन आप मैनेज कर जाती हो?
ऐसा कौन-सा ‘रिज़ल्टेंट फोर्स’ लगाती हो,
जो हम ‘मल्टी-डायरेक्शनल फोर्सेस’ को बैलेंस कर जाती हो।

 

माँ, तुम सब कैसे कर जाती हो?

4
क्यों सबको अपनी ही मंज़िल लगती है प्यारी?
क्यों हमेशा सबसे बाद में ही आती है आपकी बारी?

 

कभी एक कभी आधी,
वो भी ‘गारंटीड’ बासी,

 

लप्प-झप्प खाकर कैसे मीलों भागती हो ‘स्कूल’,
ये कभी न जान पायेंगे हम जैसे ‘फूल’,

 

वहाँ भी झेलती हो
वो चिलचिलाती गर्मी और कड़कड़ाती सर्दी,

 

जिसमें हम जैसे फूल्स
या तो पिघल जायेंगे, या जम जायेंगे।

वी आर श्योर, हम ये सब कभी न सह पायेंगे।

कैसे ये करिश्मा कर जाती हो ?

 

माँ, तुम सब कैसे कर जाती हो?

 

 

5
सदा रहती हो अपने कर्तव्य-पथ पे अग्रसर,
चाहे जैसा हो रास्ता
कितनी ही मुश्किल हो डगर,

 

न की इक ‘उफ्’ तक, न कोई अगर-मगर,
सदा लड़ते, जीतते तय करती हो ज़िन्दगी का सफ़र,

 

देखे हैं क़ि़तने ही मुसीबतों के ज्वारभाटे
अभावों की लहर,

 

पर सदा ही डटे रहे हैं और डटे रहेंगे
आपके दृढ़-संकल्प व ‘और ज्यादा’ मेहनत की क़सर

 

सदा सिफर ही रहा है
इन ज्वारभाटों, अभावों की लहरों का असर,

 

कैसे जीवन की इन कॅंटीली राहों पे चलते हुए,
कैसे हर सुख-दुख, रंजो-ग़म सहते हुए,

 

कैसे बेख़ौफ़ हो इन परिस्थितियों से लड़ते हुए,
कैसे ये संघर्षमयी जीवन व्यतीत कर जाती हो?

 

कैसे अपनी सारी अस्मिताओं को भूल
स्वयं को हम में कहीं खो जाती हो।

 

शायद इसीलिए तुम ‘माँ’ कहलाती हो।

 

सच्ची बताओ माँ, तुम सब कैसे कर जाती हो????

 

shivam shukla

 

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