कन्या हैं वो ये सोच न मारो अपने ही खून को
करेगी वो तुम्हारा घर रोशन
न बुझाओ अपने ही घर की ज्योति को
क्यू तुम ये सोचते हो
कि होगी वो एक दिन पराई,
करेंगे उसपर खर्च तो होगा फिजूल खर्च,
लगाएगी कही इज्जत पर धब्बा,
अन्त समय नही करेगी तुम्हारा ख्याल
ये सब तुम्हारा भ्रम हैं
अपने खून को एक बार धरती पर आने तो दो,
एक बार इस चिड़िया को चहचहाने तो दो,
एक बार इसे नीले आसमाँ तले उडान भरने तो दो,
एक बार उसके पर न कतर के तो देखो
वो होगी एक दिन जरूर पराई यही सत्य हैं
किन्तु सत्य यह भी हैं
वो न होगी फिजूल खर्च तुम्हारा,
न लगाएगी इज्जत पर धब्बा तुम्हारे,
देखना अंत समय बुढ़ापे की लाठी बन
वो ही थामेगी हाथ तुम्हारा
इसलिए कन्या है वो ये सोच न मारो अपने ही खून को
बस एक बार इस चिड़िया को चहचहाने का मोका दे के तो देखो
होगा नाज़ फिर एक दिन तुम्हे भी तुम्हारी चिड़िया पर
जब करेगी उसकी ज्योति से तुम्हारा जीवन रोशन
शोभा सालवी "श्री"
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