Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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"कन-कन में तेरा वास

 

कन-कन में तेरा वास....प्रभु जी मैं क्या बोलूं.....
छोटा मुहँ बड़ी बात..... प्रभु जी मैं क्या बोलूं.....

 

तूने सृष्टि को रचाया, उस में सूरज चाँद बनाया,
तारों से तूने सजाया, ऐसे लगे जैसे, खिलते हो बगिया में फूल......
प्रभु जी मैं क्या बोलूं.....

 

छोटा मुहँ बड़ी बात...... प्रभु जी मैं क्या बोलूं........

 

तेरी सृष्टि बड़ी विचित्र चिंटी, मछर, शेर कबूतर,
सब भरते साँस.....
प्रभु जी मैं क्या बोलूं........

 

छोटा मुहँ बड़ी बात...... प्रभु जी मैं क्या बोलूं........


खाने का इंतज़ाम बड़ा है, जंगल से संसार रचा है,
सबको मिले भर पेट......
प्रभु जी मैं क्या बोलूं..........

 

छोटा मुहँ बड़ी बात...... प्रभु जी मैं क्या बोलूं........

 

तेरी दुनिया बड़ी है सुंदर, कहीं पहाड़, कहीं है जंगल....
कहीं है नदियाँ, कहीं समुद्र, ये अदभुत तेरा कमाल
प्रभु जी मैं क्या बोलूं.........

 

छोटा मुहँ बड़ी बात...... प्रभु जी मैं क्या बोलूं.......

 

तुझको कोई समझ ना पाया, अदभुत तूने खेल रचाया,
चिंटी तक इंसान बनाया, पक्षियों को तूने उड़ाया, ऐसा तेरा खेल,
प्रभु जी मैं क्या बोलूं.............

 

छोटा मुहँ बड़ी बात.....प्रभु जी मैं क्या बोलूं........

 

"बंसल" तुझको नमन करे, दुनिया देख के मगन रहे,
ऐसा रचाया संसार.....प्रभु जी मैं क्या बोलूं.......
जिसका कोई नहीं है सार.....
प्रभु जी मैं क्या बोलूं.............

 

छोटा मुहँ बड़ी बात..... प्रभु जी मैं क्या बोलूं........

 

कन-कन में तेरा वास....प्रभु जी मैं क्या बोलूं.....
छोटा मुहँ बड़ी बात..... प्रभु जी मैं क्या बोलूं.....

 

 

लेखक:- श्री निरंजन कुमार बंसल

 

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