तेरे बिना इस दुनिया में, कुछ खास नज़र नहीं आता,
कहने को तो सब कुछ है, पर मुकाम नज़र नहीं आता,
अंधेरे में चल रहा हूँ, इक उज़ाले की तलाश में,
उज़ाला कहाँ है, समझ नहीं आता,
चलते-चलते अब थक गया हूँ, अब मंज़िल का छोर नज़र नहीं आता,
पूछे भी किससे, बतायगा कौन, हर कोई अपने में खोया है,
अपना अब कोई नज़र नहीं आता,
काश तेरा साथ होता, तो मंज़िल को पा जाता,
अब साथ किसका ले, कोई हमसफर नज़र नहीं आता,
दुनिया तो अब तेरे बिना, वीरान सी लगती है,
अब कोई गुलस्थान नज़र नहीं आता,
पहले जो जीने का मकसद था, वो मकसद अब नज़र नहीं आता,
जींए भी तो कैसे, कुछ समझ नहीं आता,
चले जा रहा हूँ-चले जा रहा हूँ,
कब तक चलूँगा, कुछ समझ नहीं आता......
तेरे बिना इस दुनिया में, कुछ खास नज़र नहीं आता
कुछ खास नज़र नहीं आता.....
लेखक :- श्री निरंजन कुमार बंसल
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY