तू ही, तू है, तू ही, तू है, तू ही, सब के अंदर.....तू ही सब के अंदर.....
तू ही धरती, तू ही अम्बर, तू ही नदियाँ, तू ही समुद्र.....
तू ही, सब के अंदर.....तू ही, तू है, तू ही सब के अंदर.....
तू ही अल्लाह, तू ही मसिहा, तू ही वाहेगुरू, तू ही ईश्वर,
तू ही सब के अंदर.....
तू ही, तू है, तू ही सब के अंदर.....
तू ही सूरज, तू ही चंदा, तू ही तारे, राहु-केतु
तू ही, तू है, तू ही सब के अंदर.....
तू ही रातें, तू ही दिन है, तू ही ठंडक, तू ही तप्पन है,
तू ही सबकी धड़कन, तू ही सब के अंदर....
तू ही, तू है, तू ही सब के अंदर.....
तू ही दुख है, तू ही सुख है, तू ही पीड़ा, तू ही सुकुन है,
तू ही सब के अंदर....
तू ही, तू है, तू ही सब के अंदर.....
क्या चिंटी, क्या हाथी, शेर, सब के भरता तू ही पेट,
तू ही सब के अंदर....
तू ही, तू है, तू ही सब के अंदर.....
तू ही सृष्टि का रचयता, तू ही पालन हार जीवों का
तू ही सब के अंदर....
तू ही, तू है, तू ही सब के अंदर.....
हर इक चीज़ में नूर है तेरा, "बंसल" माने सत्य तेरा.....
सब में तू है, सब में तू है, ये ही सत्य तेरा.....ये ही सत्य तेरा.....
तू ही सब के अंदर.....
तू ही, तू है, तू ही सब के अंदर.....
तू ही सब के अंदर.....
लेखक :- श्री निरंजन कुमार बंसल
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