हरिद्वार में हरकी पेड़ी पर संध्या समय गंगा आरती के लिए काफी भीड़ जमा होती है। असंख्य श्रद्धालुओं और पण्डों से दृश्य काफी मनोरम था। गंगा तट पर थड़ियों का बाज़ार , गंगाजल ले जाने के लिए हर साइज़ की प्लास्टिक केनें वहां उपलब्ध थीं। बहती गंगा में लोग अपने पाप धोने आए थे। गंगा जी की आरती के वक्त चारों ओर आध्यात्मिक माहौल और उसपर असंख्यों जलते हुए दीपों की छवि गंगा में इस दिव्य वातावरण की शोभा बढ़ा रही थी। भीड़ अधिक होने के कारण सबने एक दूसरे का हाथ पकड़ा था कि खो नहीं जाएं। मगर वहां पलक झपकते ही कब जेब कट गई पता ही नहीं चला। यह तभी हुआ होगा जब हाथ ऊंचे कर-करके ताली बजा रहे थे। अब जेब में एक भी पैसा नहीं था। अम्मां ने गंगाजल मंगवाया था। बिना पैसे, बिना केन किसमें भरते। मन को अपने जैसे तैसे समझा लिया कि शायद गंगा का असर अब कम हो गया है। गंगा मैली हो गई है। यहां ही लोग पाप धोने के बदले जब अपने पाप बढ़ा रहे हैं तो गंगा बोतल में बंद हो दूसरे शहर पहुंच क्या कर पाएगी। गेट से निकलते वक्त तक्ष्ती पर निगाह पड़ी, जिसपर लिखा था-‘‘जेब कतरों से सावधान।’’
श्रीमती रचना गौड़ ‘भारती’
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