Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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अभिव्यंजनाये

 

१.
अनबुझे समंदर नहीं ढूंढा करते,
मंजिल कि चाह में रस्ते नहीं भुला करते ,
रिक्त से शानो कि परछाई छू कर
इक बूंद में ही सागर को पी लिया करते है.


२.
मधुरव मधु का अभिनव प्याला,
प्रेम का अतुल अनुतरित हाला,
कहते जिसको अतुल व्यसनालय,
प्रिय मैंने है पी डाला ,
अब आ तू भी देख क्या होता,
नव-२ सृजन कर ये मन रोता,
तू भी पी बिन सोचे सखी !
फिर "कितना मधुर हिय होता".

३.
लब्जो को जुबाँ तक लाते तक नहीं,
वो बिन सोचे मुस्कराते तक नहीं,
कभी सकी से मचल जाते है बेहिसाब,
कभी जाम को हाथ लगाते तक नहीं.



४.
चंद लम्हों में अभी कुछ तो सिमट जाना है,
तेरे लब्जो से मेरा नाम भी मिट जाना है ,
जिस तरफ भी चाहू उस तरफ बस वीराना होगा,
मेरे निशां पर भी तो कब्र को खुद आना होगा.

५,
स्पर्श तेरा कभी किया नहीं
क्यू मैंने अमृत पिया नहीं
तू कितनी बार आई राह में
मैंने रुक कर तुजे पिया नहीं
अब जो पिया है ना जानते हुए
कठिन कश्तियो को थामते हुए
मखमली राहे मेरे सामने खड़ी
बेहोश हो रहे पर,
चाहे मेरे हाथ में पड़ी.

६,
कभी तू चले कभी मंजिले
कभी भरी पड़ी गमो कि दलद्लें
आहिस्ता से जाना मयकदे में दोस्त!
छलक ना पड़े मदिरा कि बोतलें
तेरे गमो कि शाम में पिघल ना जाये ये,
तेरे रास्तो से मचल ना जाये ये
तेरे साथ चलाना मय का जमाना नहीं
तुजे फिर से माय को मानना नहीं

 

 

Swati Sharma

 

 

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