मेरी उन्मादित आराधना
और उस आराधना में प्रेम
तुम्हारा व्यक्तित्व
और मेरा नेह
अनंत भाव प्रेम के
और हृदय का छलकना
मेरे लिए अनेक प्रश्न
ओ अनुत्तरित मेरी इच्छाऐ
फिर तेरा हर सर्जन
स्पर्श करे मेरी आत्मा
फिर छु जाये अनंत
फिर क्षण में शोभित हो
पल-पल मेरा अंश
अपने आरंभ को स्पर्श करू
या के अंत का दंश
अभी तो अधखिली सी मैं
पथो में सर्जन करू
मेरी पुष्पवत इच्छायें
अनंत मन की वर्जनाये
अलंकृत हो तेरी प्रहर से
मैं सूर्य सी शोभायमान
चहो ओर बिखरा रही
तेरी आभा बिना ज्ञान
चंद्र की किरण सी शीतल
अनुराग भरे भ्रमर सी चंचल
शलभ की इच्छायें थामे
अच्युत तुममे शोभायमान
ओ मेरे प्रिय प्राण
Swati Sharma
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY