Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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साथी

 

कभी खूबसूरत तुम पथ को बना दो
कभी मेरे जीवन कि रहे सजा दो
तुम्ही मन कि हो वेदना के मुसाफिर
तुम्ही मेरे मन कि पीड़ा के विचारक
छलक जो गए वो मेरे मन के सपने
चुपके से आके उन्हें तुम सजा दो
कभी मेरे जीवन कि गाठें खुली जो
चलू मै संभलके मन से मचल के
तुम जानो सब ये मेरे मन कि बाते
मै कौन हू? कौन हू? तुम बता दो
मै प्रेम कि दासी, दासी रहूंगी
मै सत्याकामी, सत्याकामी रहूंगी
चलती रहूंगी मै चलती रहूंगी
तुम जाके ये सारे जग को बता दो
सासों में सासों कि पीड़ा चली
मेरे मन में भावो कि आंधी ढली
मै ना बहकू ,ना सम्भ्लू,तेरे संग चल दू
मेरे हाथ थामे तुम मुझको चला दो

 

Swati Sharma

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