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Dr. Srimati Tara Singh
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उल्लास व उमंग का त्यौंहार मकर सक्रांति

 

 

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भारत त्यौंहारों का देश है। यह कहा जाता है कि यहां बारह महीनों में पंद्रह त्यौंहार होते हैं। त्यौंहार ईश्वर के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने, सामाजिक संबंधों में मजबूती प्रदान करने व जीवन में उल्लास खुशी मनाने के लिए मनाए जाते हैं। इसी तरह त्यौंहार है मकर सक्रांति। मकर सक्रांति का पर्व पूरी सृष्टि के लिए ऊर्जा क स्रोत सूर्य की अराधना के रूप में मनाया जाता है। इस दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है । एक स्थान से दूसरे स्थान में प्रवेश को सक्रांति कहते हैं। सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में जाने को सूर्य की सक्रांति कहते हैं। एक सक्रांति से दूसरी सक्रांति की अवधि ही सौर मास है। वैसे तो प्रतिमाह सूर्य एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करता है और इस कारण सूर्य की बारह सक्रांति होती है लेकिन सूर्य का मकर राशि में प्रवेश करने के समय को विशेष महत्व दिया गया है और इसी को सूर्य की मकर सक्रांति के पर्व के रूप में मनाया जाता है। इसी समय में सूर्य दक्षिण दिशा से उत्तर दिशा की ओर रूख करता है जिसे सूर्य का उत्तराण में आना कहते है और सूर्य का उत्तरायण में आना भी पर्व के रूप में मनाया जाता है। वास्तव में मकर सक्रांति सूर्य के उत्तरायण में आने का पर्व है और भगवान कृष्ण ने गीता में भी सूर्य के उत्तरायण में आने का महत्व बताते हुए कहा है कि इस काल में देह त्याग करने से पुर्नजन्म नहीं लेना पड़ता और इसीलिए महाभारत काल में पितामह भीष्म ने सूर्य के उत्तरायण में आने पर ही देह त्याग किया था। ऐसा माना जाता है कि सूर्य के उत्तरायण में आने पर सूर्य की किरणें पृथ्वी पर पूरी तरह से पड़ती है और यह धरा प्रकाशमय हो जाती है।


उत्तर भारत में यह पर्व मकर सक्रांति, पंजाब में लोहड़ी, दक्षिण भारत में पोंगल, पूर्वी भारत में बिहू, केरल में मकर ज्योति के नाम से मनाए जाते हैं। यह कहा जाता है कि मकर सक्रांति के बाद प्रत्येक दिन तिल के जितना बड़ा होता रहता है इसीलिए प्रतीक रूप में इस दिन तिल का दान करने, तिल से स्नान करने, तिल से बना भोजन खाने, तिल से अपने पितरों को श्राद्ध अर्पण करने का काफी महत्व है। इस दिन लोग गंगा, यमुना, सरस्वती, गोदावरी सहित पवित्र नदियों में सूर्योदय से पहले स्नान करते हैं और दान पुण्य करतंे हैं।


पुराणों के अनुसार इस दिन सूर्य अपने पुत्र शनि की राशि में प्रवेश करते हैं, वैसे तो ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य व शनि में शत्रुता बताई गई है लेकिन इस दिन पिता सूर्य स्वयं अपने पुत्र शनि के घर जाते हैं तो इस दिन को पिता पुत्र के तालमेल के दिन के दिन व पिता पुत्र में नए संबंधो की शुरूआत के दिन के रूप में भी देखा गया है।
इसी दिन भगवान विष्णु ने असुरों का संहार करके असुरो के सिर को मंदार पर्वत पर दबा कर युद्ध समाप्ति की घोषणा कर दी थी। इसलिए यह दिन बुराईयों को समाप्त कर सकारात्मक ऊर्जा की शुरूआत के रूप में भी मनाया जाता है।
पुराणों के अनुसार भगवान राम के पूर्वज व गंगा को धरती पर लाने वाले राजा भगीरथ ने इसी दिन अपने पूर्वजों का तिल से तर्पण किया था और तर्पण के बाद गंगा इसी दिन सागर में समा गई थी और इसीलिए इस दिन गंगासागर में मकर सक्रांति के दिन मेला भरता है।


मकर सक्रांति तब ही मनाई जाती है जब सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करें वैसे तो यह दिन 14 लं 15 जनवरी का ही होता है। वास्तव में सूर्य का प्रति वर्ष धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश बीस मिनट की देरी से होता है। इस तरह हर तीन साल के बाद सूर्य एक घण्टे बाद व बहत्तर साल में एक दिन की देरी से मकर राशि में प्रवेश करता है। इस हिसाब से वर्तमान से लगभग एक हजार साल पहले मकर सक्रांति 31 दिसम्बर को मनाई गई थी पिछले एक हजार साल में इसके दो हफ्ते आगे खिसक जाने से यह 14 जनवरी को मनाई जाने लगी। अब सूर्य की चाल के आधार पर यह अनुमान लगाया जा रहा हे कि पाॅंच हजार साल बाद मकर सक्रांति फरवरी महीने के अंत में मनाई जाएगी।

 

 


श्याम नारायण रंगा ‘अभिमन्यु’

 

 

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