Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

न भूख ही मिटे यहां न चैन ही

 

न भूख ही मिटे यहां न चैन ही मिले कभी
समझ मेरी न आये है क्या जिन्दगी कहें इसे

तुम्ही नहीं हसीन हो जहांन है भरा पड़ा
अगर यही है आशिकी क्या आशिकी कहें इसे


है सेन्सक्स चढ़ रहा गरीब भूखों मर रहा
अगर यही है तरक्की क्या तरक्की कहें इसे

दवा नहीं दुआ नहीं मरीज पर मरा नहीं
तुम्ही कहो ऐ दोस्तो क्या दिल्लगी कहें इसे

ये गेरुए पहन-पहन,वे रट रहे खुदा-खुदा
हैं लूट्ते सभी को हैं,क्या बन्दगी कहें इसे

वे दर्द बाँटते नहीं ,न सुख ही बाँटते कभी
अगर यही है दोस्ती क्या दोस्ती कहें इसे

 

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ