-सिराज*
नहीं सहेंगे अब हम
जुल्मों-सितम तुम्हारा
बहुत घसिटा है तुमने हमें
अपने स्वार्थ के आंगन में।
कैसी मानसिकता है तुम्हारी
कैसा तुम्हारा व्यक्तित्व, कैसा तुम्हारा धर्म।
करते हो मंच पर आदर्श की बातें, एकता की बातें
करते हो शोषण-अत्याचार, छुआ-छूत यथार्थ जीवन में।
क्योंकि राज-काज, सरकार, नेता, पूरी व्यवस्था है तुम्हारी
स्वतंत्रता, समानता, भाईचारे का नारा है तुम्हारा
किसको है स्वतंत्रता, कौन है समान, कहाँ है भाईचारा
कौन जाने, किसे बताये, किसे सुनाये दु:ख-दर्द हमारा।
लेकिन अब हम परंपरागत बन्धनों को तोडेंगे
कुंठित व्यवस्था को सुधारेंगे
जाति-धर्म के नाम पर हो रहे अत्याचार, भेद-भाव
वर्ण व्यवस्था को मिटायेंगे
होगी स्वतंत्रता सभी मानव-जाति को
आपस में गले लगायेंगे, दिलायेंगे आत्म-सम्मान सभी को
बढायेंगे सभी में भाईचारा
फिर निकलेगा हर मानव के मन से “हम एक है” का नारा।
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY