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Dr. Srimati Tara Singh
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हम 'सबके' रावण का अट्टाहास

 

हम 'सबके' रावण का अट्टाहास

कैसी चल रही है रावण दहन की तैयारी  ?  ओह सॉरी  ,  पहले यह तो पूछ लूं कि मातारानी की अच्छे से पूजा की कि नहीं ?  

क्यूंकि आज मैं एक औरत के तौर पर , हम सबके भीतर बैठे 'रावण ' और मेरे जैसी हर औरत के भीतर बैठी 'दुर्गा 'के बीच उमड़ते सवालों पर विमर्श करना चाहूँगी . वक़्त हो त्योहारी मूड को थोड़ा किरकिरा कर थोड़ी संजीदा बातों पर गौर करने का, तो प्लीज़ पढ़ने का कष्ट उठा लीजिये ।

"उसने मुझे ज़बरदस्ती चूमने की कोशिश की ."  मेरे पहले जॉब और छोटे शहर से निकलने के बाद यह मेरी ज़िंदगी का सच था . 

मैं बहुत सुंदर हूँ . वैसे तो वो शादीशुदा है पर मेरे जैसी सुंदर लडकियाँ उसे 'उकसाती' हैं . 

वह हर वक़्त डींग हांकता है कि शादीशुदा हूँ तो क्या . मेरे तो ऐसे कई अफेयर रहे हैं . अभी भी .

"उसने मुझे अश्लील तस्वीरें भेजीं "  अब वह कहता है कि वह अवसाद के लिए गोलियां ले रहा है . बेचारा कॉमेडियन है तो सोचता है इसे भी मज़ाक में चलता कर दूं . 

" वह एक संस्कारी अच्छा इंसान है .सिर्फ तब तक जब तक वह नशे में नही होता . उसके बाद वह एक भद्दा और वाहियात इंसान बन जाता है और औरतों के साथ घटिया हरकतें करता है . पर उसने उस रात नशे में मेरी आत्मा को तबाह किया . क्योंकि अगले दिन मैं बुरी तरह दर्द में थी . मेरे साथ यौन हिंसा हुई थी . क्या यह मुझे पता नही चलेगा ? क्या मैं झूठ बोल रही हूँ ? 20 साल बाद भी  ? 

 "क्या सिर्फ शराब दोषी है या हमारा सदियों से सड़ा हुआ दिमाग और मूल्य ....जो नशे के ज़रिये सोशल कंडीशनिंग के नतीजे के  तौर पर बाहर आता है ."

" वह ,मेरा बॉस था . मीडिया जगत का बड़ा नाम . आज वो सत्ता के गलियारों में दो देशों के रिश्तों को संभालता है . उसने कभी मुझे मेरी पत्रकारिता के करियर की शुरुआत की सबसे वीभत्स यादें दीं . " 

वह 'कहती 'हैं क्या हुआ फ़िल्म जगत में अगर कास्टिंग काउच है , रोटी तो देता है ,कम से कम बलात्कार करके सड़क पर तो नही छोड़ता . मानो इतनी आम चीज़ कि आत्मा और सपनों की नंगी कीमत , छोटे शहर वालों , इतनी तो देनी पड़ेगी !! 

वह इस उम्मीद में उसके घर की औरतों को फ़ोन करती है .कि वह तो समझेंगी पर .... जवाब में उसका मज़ाक उड़ाया जाता है . वह कोर्ट में केस लड़ती है . वह उसे ब्लैकमेल करता है . वह एक सुपरस्टार का करीबी मित्र है . वही जो औरतों की इज़्ज़त के लिए जाने जाते हैं . 

वह उसपर मानहानि के दावे ठोकने  के लिए वकीलों की जमात खड़ी कर देता है पर मज़ाल है उसके नाम ,भविष्य पर सवाल उठे !! 

 पर अगर पच्चीस साल लगे उसे ये ज़माने से कहने में तो मानिये कि अब उसके पास न तो खोने को कुछ है ,न पाने को .  
"तब तुम्हारे ताक़त के दानव के सामने रोज़गार और पहचान की तलाश में मैं टूट गयी .  शुरू हुआ नन्हा कैरियर और  रूढ़िवादी समाज में एक मज़बूत जगह बनाने का ख्वाब मुझे तुम्हारे आगे घुटने टिकवा गया .तुमने मेरा जीना हराम तो वैसे ही कर रखा था ."

वह कहता है ,अब तो मैं रिटायर्ड हूँ . अमेरिका में . वैसे मैं बहुत सीधा आदमी हूँ . मुझे याद नही . ऐसा कुछ हुआ . 

वह कहता है , रेप हुआ होगा .पर किसी और ने किया होगा .मसलन एक औरत को निहायती मूर्ख , कमदिमाग और  कम याददाश्त करार देना कितना आसान है . 

 दस साल की एक लड़की और उसके शरीर को अपने गंदे हाथों से छूता वह . न जाने कितनी रातों आये बुरे सपने और पसर के बैठा डर  . 

वह शेल्टर हाउस का केयरटेकर है . वह सरकारी पैसे से चलता है .हम मूक बधिर हैं . वो और उसके साथी छत पर हमारे साथ सालों से गलत काम कर रहे हैं .

चौदह महीनों की वो नन्ही जान जिसके नाम पर गुजरात उबलता है . एक सात साल की जानवर चराने वाली लड़की ......और ..?

और एक लंबी फेहरिस्त . आईना देख लीजिए सभी . ये हम हैं . हमारा ही समाज है .हमारे ही आदर्श पुरुष हैं . हमारी ही परवरिश हैं . हमारी ही नजरअंदाजी का उदाहरण हैं .

औरत के रूप में बोलती पितृसत्ता की आवाज़ हैं . सासों , ननदों, कलीग्स, जेठानियों , माओं और दोस्तों के रूप में मौज़ूद . जहां एक औरत संस्था प्रमुख कहती  हैं , हम तो बेटियों की तरक्की चाहते हैं , ज़्यादा आज़ादी नही !! 
क्या हुआ लाइब्रेरी नहीं जा सकती अगर शाम के सात के बाद कर्फ्यू टाइमिंग जो है . लड़कों से बात नही कर सकतीं , भला संवाद कौशल आधी आबादी से बात किये बिना डर के साये में यूं ही विकसित हो जाएगा ?
 
 अगर बेटा बाइक लेकर दिन भर बाहर रहे तो कोई सवाल नही पर सामूहिक दुष्कर्म कर एक होनहार छात्रा के जीवन को तबाह करे तो नही साहब , वो तो ऐसा कर ही नही सकता ! सारी चाबी बेटियों पर ही लगा दी ?  और सारा प्यार बेटों पर ? 

वैसे आखिर  कार्यस्थल पर यौनहिंसा क्यों होती होगी , जब मैं यह सोच रही थी तो मुझे समझ आया  कि जब से औरतें पुरुषों  के किलों में सेंध लगाने लगी हैं , नींदे उड़ने और बौखलाहट -सिस्टमिक रूप से ,ताक़त , पैसे और स्टेटस की बदौलत -हिंसा , डराने ,धमकाने और यौन शोषण के रूप में बाहर आने लगी है . 

ताकि वे रुक जाएं . जैसे सुरक्षा को लेकर चिंतित माता पिता बेटियों को एक अच्छे भविष्य के नाम पर कैरियर कम अच्छा पति भेंट करना ज़्यादा ज़रूरी समझते हैं . और उन्हें रोकने की तो सारा समाज ही कोशिश करता है  . यौन हिंसा शायद उनके इस जज़्बे को तार तार करने का आखिरी हथियार होती है .

पर आखिर नन्ही बच्चियों और यहां तक की नन्हे बच्चों के साथ क्यों ये कोई करता है ?  निःसंदेह  ताक़त और उम्र में बड़ा होना किसी को एक मासूम कली को मसलने देता है . खौफ पैदा करना और उसके बचपन को कुचलना .

तो वक़्त है . अपने आस पास होते इन आम हो चुके किस्सों को बाहर लाने का .  जैसे आपके अपने घर में हो रहे यौन शोषण के  . छोड़ दीजिए ऐसे लोगों का साथ .देखिये उस सात महीनों की गर्भवती ,दुष्कर्मी की पत्नी को जिसने उससे सारे संबंध तोड़ने की हिम्मत दिखाई . 

 पत्नी ,बेटी , बेटे , रिश्तेदार ,दोस्त ,पार्टनर ,कलीग से पहले आप एक इंसान हैं , आपका साथ या अलगाव आपके स्टैंड को दर्शायेगा और फिर ऊपर वाली अदालत में तो जवाब आप ही को देना होगा . द्रौपदी के चीर हरण में मौजूद नामी दिग्गज महान पुरुषों , पतियों ,गुरुओं की स्थिति याद है ना ? 

और हां लड़कियों के लिए शारीरिक  मज़बूती से ज़्यादा मानसिक दृढ़ता ज़रूरी है .

निजता के अभी अभी मिले मूल अधिकार में और वैसे भी मेरा शरीर ,मेरी आत्मा और मेरा आत्मसम्मान , इनकी सीमाएं मेरी हैं ,जो इन्हें हाथ या नज़र या इरादों से भी छूएगा , वह सच के ताप के सामने जलेगा !  आज नही तो कल .
फिर किसी गंगा में डुबकी लगाने से या मक्का मदीना जाने से भी बचा न जा सकेगा .

आइये मी टू आंदोलन के नतीजतन सच्चे ज़मीनी बदलाव लाने की कोशिश करते हैं . अपने इर्द गिर्द मौजूद हर बच्ची ,लड़की , युवती ,औरत , वृद्धा को बेखौफ वज़ूद दिलाने के लिए कदम बढ़ाते हैं  . 

 सत्ता ,  ग्लैमर , पैसे वालों के  झूठे दिखावटी महिला समर्थक आश्वासनों के आगे झुकने की बजाय व्यवहार से , घर से ; बराबरी और खुली उड़ान की कवायद को अपने छोटे छोटे प्रयासों से जारी रखते हैं .

जानें , पढ़ें और सीखें ,क्या सीमाएं हैं स्त्री पुरुष के आचार व्यवहार की ,जब वे कार्यस्थल में  होते हैं . समझें ,औरत चीज़ नही है . जागीर नही है और मनमाफिक इस्तेमाल करने वाली तो बिल्कुल नही . दिल धड़कता है उसके सीने में . सिसकता है वह दिल जब वह अपने भविष्य और वर्तमान को ताक़त के दम्भी गलियारों  में खोता हुए देखती है .

औरतें भी समझें कि उनके यौनांगों के नाम पे दी जाने वाली  गाली उनके अस्तित्व को ठेंगा दिखाती है . कि दहेज की शादी उन्हें 'सेकंड सैक्स' यानि दोयम दर्जे का बनाती है . आज़ादी की कीमत उनके शरीर और आत्मा को रौंदने से नहीं दी जाएगी . कितना ही मुश्किल हो , आवाज़ उठाने होगा . और कम से कम हथियार डालने से पहले बिगुल बजाना होगा ताकि उसे समझ आये कि वह जो सोच रहा है , उतना आसान नही होगा उसके लिए . उन्हें समझना होगा कि प्यार के नाम पर हर रात हैवानियत का शिकार होना उसकी तौहीन है . डायमंड्स और चॉकलेट्स के पर्दे के पीछे   हिंसा के निशान नहीं छुपते .

साथ ही इस भीड़ में स्वार्थ साधकर गलत आरोप लगाने वाली और  दहेज़ प्रताड़ना वाले कानून का दुरुपयोग करके अपनी ही औरत बिरादरी की ,असल में ,शिकार महिलाओं के हितों को नष्ट कर रही हैं . जो अभी भी मूल मुद्दे को समझ ही नही पायी हैं . जिन्हें षड्यंत्र की गंध ही नही आती बल्कि वे खुद पितृसत्ता , उपभोक्तावादी , मार्केट की चकाचौंध  में खोखली हो खुद के साथ साथ अन्य निर्दोषों -पुरुषों , स्त्रियों , परिवारों की ज़िंदगियाँ खराब कर लेती हैं . जागिये मोहतरमा .  आप से ही तो संसार की उत्पत्ति होती है . आपके मूल्य ,संस्कार और सही गलत का फर्क अंततः समाज और दुनिया के अनंतकालीन नींव रखेगा ! 

हम बहरे अंधे गूंगे आडंबरियों को जगराते में माता से माफी मांगते हुए बाहर आकर चिल्लाके सही समय पर न्याय की अटूट लड़ाई लड़नी होगी .

जीतेंगे कि नहीं पता नही पर बिना बोले और बिना उसके कहे को समझे जीयेंगे नहीं . 

उधर देखिये रावण अभी भी  अट्टाहास कर रहा है और माँ दुर्गा , काली रौद्र रूप में प्रविष्ट हो रही हैं . मूर्ख मत बनाइयेगा साहब , इन्हें जगत माता कहते हैं . 

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