महक ...अच्छाई की .
तेरी अच्छाई की महक
में हो जाती हूँ मैं सराबोर
उसकी एक अजीब सी कशिश है
कि खिंची चली आती हूँ तेरी ओर
एक आकर्षण गज़ब सा
मानो किसी मैग्नेटिक फील्ड सा
कि तेरी अच्छाई की महक
से दूर होकर भी तुमसे
मैं यादों को तुम्हारी
भीना पाती हूँ अक्सर
जब उनसे टकरा जाते हो तुम
किसी मोड़ पर
मिली थी तुमसे पहले बार
सुना था तुम्हे लगातार
तुम्हारे कुछ अलग कर जाने के जज़्बे का हुआ था
पहला साक्षात्कार
पिछड़े और मुश्किल हालातों में तुम
जगाते शिक्षा की अलख
हर नकारात्मकता से भिड़ जाते तुम
पर फिर भी सुकून और
एक इत्मीनान तुम्हारे चेहरे पर था बिखरा
और थी तुम्हारी जूनून की एक निराली दुनिया
उस वक़्त जब न्योता दिया था
मुझे उस दुनिया में आने को
अपनी शिक्षा की पूँजी को साझा करने को
ख़ुशी और उत्साह संभाले नही संभला था
क्योंकि शायद ये वह था
जो मुझे मुझसे जोड़ता था
दुनिया जहाँ एक लड़का डिग्री को नही
समाज को सर्वोपरि रखता है
दुनिया वहां जहाँ उसी समाज की
तर्कश भरी नज़रों को नकारता
बदलाव की अकेली लड़ाई
लड़ने को रेस दुनियावी ठुकराता
कैसे न चली आती उस दुनिया में
तुम्हारी अच्छाई की महक
जो इर्दगिर्द तुम्हारे ख्यालों के
करीब ले आती है ,क्यूंकि
चाहती हूँ महकना मैं भी
भीगना चाहती हूँ तुम्हारी इस महक में
क्योंकि कभी कभी न
जो हज़ारों तुमसे मिलकर महक जाते हैं
उनसे जलन की गंध ,
रूह से मेरी आती है ,
खुशनसीबी उनकी जो है
हाँ हँस लो , नादानियों पर मेरी
पर सुनो ,तुम यूँ ही
भीने भीने महकते रहना
चमकते रहना
क्यूंकि अच्छाई की महक
भिगोती है आत्मा को
मन के भीतरी कोनों को
दिल के आलसी सुस्त हिस्सों को
और उस महक को
प्रेरित करती है औरो तक पहुँचाने को
कर जाती है जो मुदित और सुगन्धित
ज़िन्दगियों को .
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