पिता ,पुत्री , शिव और ‘शक्ति’ .
दिवाली प्रकाश का त्योहार होता है . शिवरात्रि शिव रुपी जगत पिता ,जगत गुरु भगवान का त्यौहार है . इस शिवरात्रि , याद हो आते हैं दो प्रसंग जो विगत दिवाली पर यूँ ही टकरा गये और पीछे विचार के प्रकाश-पुंज छोड़ गये . और जो पिता –पुत्री के उस महत्वपूर्ण सम्बन्ध के दो रूपों को प्रस्तुत करते हैं जो एक लड़की के जीवन में ज़रूरी हैं .
एक पिता हैं , जिनकी पुत्री एक अच्छे कॉलेज से शिक्षा प्राप्त कर अच्छी जॉब कर रही है .समस्या इतनी है कि वह जॉब सॉफ्टवेयर कंपनी में होने के कारण उनकी बेटी की आंखों पर जोर डालती है ,ऐसा उन का मानना है . परन्तु इस समस्या के तात्कालिक समाधान के रूप में एक अच्छे से ‘ बिज़नेसमैन’ के साथ शादी करने की सोच रहे हैं –सुनकर एक पल , अवाक सी स्थिति जनित हो जाती है . पूछने पर कि इतनी ज़ल्दी क्या है , अभी तो ग्रेजुएट हुई है –जवाब आता है – बस ऐसा हो जाए तो टेंशन ख़तम हो जायेगी . पुत्री इकलौती संतान है व पिता मिडिल क्लास , व्यवसायी हैं .
समझ नही आता कि शिक्षा पूरी होने के तुरंत बाद विवाह की रीति समय के साथ अगर लड़कों के लिए बदली है तो लड़कियों के लिए क्यूँ नही . समझ नही आता कि खुशियों की जिम्मेद्दारी और चिंता मुक्त होने का जल्द से जल्द यह भाव माता –पिता और समाज को अदूरदर्शी बना रहा है या उनके अनुसार सोच समझकर लिया हुआ भविष्य का निर्माण कि खाते पीते घर का लड़का है ,अच्छे खानदान से हैं , कमाता भी अच्छा है . बात ख़तम .
दूसरे प्रसंग में एक फुटकर पटाखा व्यवसायी से यूँ ही शुरू हुई बातचीत में उसके भीतर छुपे पिता से संवाद हो जाता है . कुछ ख़ास आर्थिक स्थिति नही होने के बावजूद उनका अपनी बेटी के बारे में गर्व से भरा चेहरा ,आज भी भुलाया नही जा सकता . कुछ लोग आपको ऐसे मिल जाते हैं जो आपको छोड़ जाते हैं मनन के अथाह सागर के बीच.
वे आगे बताते हैं कि उनकी बेटी ने हैलीकॉप्टर पायलट ट्रेनिंग कोर्स किया है . बताओ महिला पायलट कितनी हैं आज और कितनी एक निम्न मध्यमवर्गीय परिवार से आती हैं ! हम देखते ही रह गये कि सचमुच उड़ान भर गयी ये बेटी उनकी . एक पुरुषों वाला क्षेत्र , पेशे की चुनौतियां और महिलाओं के आगे समाज जनित रखी हुईं शर्तें ! स्टीयरिंग पर बैठी औरत और कॉकपिट को संभालती औरत ,जैसा पीकू फिल्म में नायक कहता है कि ड्राइविंग तो एम्पावरमेंट का उदाहरण है .नियंत्रण और निर्णय .खुद का .खुद के रास्ते पर .
वे बताते रहे और हम उनके खुद के भीतर के जज्बे को अभिभूत हो देखते रहे . कि दिल्ली जैसे बड़े शहर में वह अब कैसे सिविल सर्विसेज की परीक्षा की तैयारी कर रही है . कैसे वह सब कुछ खुद ही ‘मैनेज’ कर रही है . हम अभिभूत इसीलिए भी थे क्यूंकि संभवतः यह जज्बा हम वर्ग आधारित हो बाँट देते हैं . या फिर आर्थिक चुनौतियां इरादों के मार्ग में आ जाया करती हैं . मुंबई में एक दफे एक बुज़ुर्ग कुली की कहानी भी ऐसी ही तो थी .जिसमें वे बताते हैं कि एक बेटी डॉक्टर ,एक आई आई टी से शिक्षित और बेटा भी इंजिनियर . उदाहरण तो हम और आप रोज़ देखते हैं ऐसे पर क्या हम उसकी प्रेरणा को जिंदा रखते हैं अपने जीवन में . ?
शिव ,शक्ति और अर्धनारीश्वर के विचार के संरक्षक हैं . हमारे पुराणों,मिथ्याओं और कहानियों में भगवान शिव , माँ पार्वती के प्रेम और सम्मान के लिए साक्षात उदाहरण देते बताये गये हैं . महिला – शक्ति और समानता के लिए इससे बेहतर स्त्रोत कहाँ पा सकेंगे हम !
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