प्रेम का मर्म
उधर वो कहते हैं कि
वैलेंटाइन पाश्चात्य का पिशाच है
जिसे वर्दी और लाठी से धमका के रखना होगा
और इधर ‘प्रमोदिनी’ के जीवन में
खिला नया ‘सरोज’
प्रेम को नए पैमाने दे गया
और वो भर उठी उन भावों से
जिसे हम तुम मोहब्बत कहते हैं
या फिर इबादत
या फिर सिर्फ एक अदद साथ
उम्र भर का
मेरी यह कहानी शायद यहाँ
आम कहानियों की तरह
हो गयी होती ख़तम
अगर इससे पहले इक रोज़
एक नापाक बुज़दिल शख्स ने
उसे प्यार के घिनौने मुखौटे वाले
रूप से वाकिफ़ न किया होता ,
पर तब शायद ‘सरोज’ ‘प्रमोदिनी’ के
जीवन में महका न होता ,
खैर तो एक वो था जिसने
सो कॉल्ड प्रेम-प्रस्ताव –भेंट
दिया एसिड की शक्ल में
और छीन ली उसकी रोशन दुनिया
पर उन पांच सालों की तकलीफ
और एक ‘अँधेरे’ संसार के बीच
नही जानती थी वह
कि एक सुनहरा रोशन जहां
इंतज़ार में है उसके ;
राधा कृष्ण को पूजने वाले
और फिल्मों में
प्यार की कहानियाँ
सजाने वाले इस देश में
उसकी भी एक कहानी होगी ,
वहां जहाँ एक इंसान
उसके लिए फ़रिश्ता बन आये
जिसका साथ सब ज़ख्मों को भर जाए
दर्द और दिल के बीच
डर और दहशत के बीच
अँधेरे और सूरज के बीच
जहाँ से एक नयी कहानी लिखी जाए .
आज लगता है
प्रेम की यह नयी परिभाषा
जगमगा रही है .
वैलेंटाइन हो या न हो
बरक़रार रहे ऐसी रुहानी कहानियाँ
और लोग जो
शिद्दत से उन नापाक इरादों को
मिला दें मिटटी में
और दिखाएं कि
वो किस मिट्टी की उपज हैं .
पर इन कहानियों के बीच
मैं और आप
क्या कर रहे हैं
क्या एसिड यूँ ही
सौ रुपये में किसी बेशकीमती ज़िन्दगी को टुकड़ा टुकड़ा
गलाता रहेगा
और हम और आप
कुछ नही कर पाएंगे ?
क्या ये लड़ाई इन कुछ लोगों की
अकेली होंगी ,
जब तक ये आप के
सामने
बन एक राक्षस
आप के खुद के वजूद को न निगल जायेगा ?
सवाल पूछिए और ज़रा एक बार
कीजिये इमैजिन ,
कांपती इंसानियत और वजूद
अब मांगते हैं कुछ जवाब .
‘प्रमोदिनी’ और ‘लक्ष्मी’ की
जिंदगियों को तो ‘ सरोज की खुशबू
और ‘आलोक’ ने रोशन कर दिया
पर क्या हम सबका साथ
हमारी आवाज़
मिलेंगे इन ‘शीरोज़ ‘ को ?
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