सपने जब फुर्र से उड़कर
आ खड़े हों हकीकत बन
होता है तब ज़िन्दगी से सामना
तब मेरी यह सहेली ,ज़िन्दगी
आगोश में ले मुझे आँखें मटकाकर
कहने लगे कि अरी सुन ,
कि आज जी ले ये मेरा तोहफा ,
कल को मेरे दूसरे रंग देख
तू हमारी दोस्ती पर शक करने लगी तो ?
क्या मालूम मेरे सवालों के तले
तू यह भूल जाए कि
तूने दोस्ती की है
मुझसे याने ज़िन्दगी से
और मैं तुझे नाराज़ तो न
करुँगी
दोस्ती का यह वादा तो
निभाऊंगी
ज़रूर
तो चल आज
तेरे सपनों के हकीकत बनने का
मनाते हैं
जश्न
तू भी क्या याद रखेगी .....!
और मैं खिलखिलाकर हँस पड़ी
अरी सुन ओ ज़िन्दगी ...
तू भी क्या याद रखेगी
पाला किस लड़की से पड़ा था
वो जो तेरी दोस्ती की शर्तों के बीच
तुझे तहे दिल से गले लगाना चाहती है
क्यूंकि
तू जानती नही
तेरी हर मनमानियां
तेरी हर नादानियाँ
तेरी हर बेचैनियाँ
तेरी हर मसरूफियाँ
तेरी हर कहानियाँ
मंज़ूर हैं मुझे
तू मुझे मुझसे मिलवाती है
वो तलाश
जो तू मुझे तोहफे में देती है
मैं तेरे लिए और प्यार
और आभार से भर जाती हूँ
चल छोड़ .... यूँ कुरेदा न कर
दोस्ती को यूँ ही बहने देते हैं न
डूबते उतराते गहराते .
एक ठहरा किनारा
न तुझे पसंद है
न मुझे
तो क्यूँ
खामख्वाह
वक़्त जाया करें हम
आ
चल
जश्न मनाते हैं.
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