शिरोरेखा
ऊंचे पहाड़ों की शिरोरेखा से सजे
मखमली हर्फ़ औ
हरीतिमा के हाशिये
कुदरत की डायरी के पन्नों पर
आज मुझे आगोश में अपने बुला रहे थे
जा पाती काश वहां जहाँ पैर मेरे
शायद एक अदद स्केट्स की दरकार में थे
या फिर पंख ...
पंख होती तो उड़ जाती रे
जानती हूँ , नादान हूँ
भला उड़ने को पंख कहाँ से लाती !
तो स्केट्स ही सही ,जी बहलाने को !
कुदरत की अप्रतिम अद्भुत कलम से निकले शब्द
और वो दूर आसमान में
मुझे बुलाती कुछ कहानियाँ .
स्याही जो लिखती हर रोज़ किस्से चुन चुन कर
हरे सफ़ेद रंगों की मुलायम चादरों से बैकग्राउंड पर
शिरोरेखा ज़रूर सफ़ेद मक्खन सी होती
मानों अधूरे लफ़्ज़ों को पूरा करते
चौकस पर आज़ाद बह चले हों हवा के संग .
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