सुर्खियाँ !!!
इस बार हम जिन तीन ख़बरों पर बात करेंगे वो जुडी हुईं हैं –भोजन के अधिकार ,आजीविका के अधिकार और निजता के अधिकार से ...
बिहार में हुआ मिड डे मील डिसास्टर कुछ वैसा ही है जैसा छत्तीसगढ़ में नक्सली हमले में हुआ ! क्यूंकि इससे पहले भी बार मध्यान्ह भोजन में कीड़े मकोड़े आदि मिलने की शिकायते आती रहती थी पर चूँकि पहली बार इस कारण से २३ बच्चों की मौत हुई और फिर तो जैसे हर रोज़ ऐसी लापरवाही का एक नमूना ख़बरों में है ही,इस वजह से तो इसे ख़बरों में आना तो था ही !वैसे बस फिर थोड़ी ही देर के लिए सही, आगामी चुनावों के डर से ही सही थोडा चमक तो गये हैं आका लोग! पर क्या है न अब लोगों के सामने भी पोल पट्टी खुल चुकी है इस योजना की !
प्राथमिक कक्षाओं में पढने वाले बच्चों की स्कूल में उपस्थिति बढाने के लिए शुरू की गयी इस योजना के फ्लॉप होने में दरअसल हर छोटी बड़ी कड़ी का हाथ है मसलन जब मध्यप्रदेश के एक स्कूल की बात करें तो मैंने पाया कि –स्वयंसहायता समूहों के अध्यक्ष की जेब में कुछ जाता है तो प्रधानाचार्य जी ‘ कुक’ से पैसे लेकर सारे बच्चों की शत प्रतिशत हाजिरी लगा देती हैं और सरकार से मिलने वाले पैसे को खुद हजम कर जाती हैं तो वहीँ कुक को भी उतने राशन का लाभ हो जाता है .वैसे बड़ा आश्चर्य हुआ ये जानकर कि इतनी अहम् योजना की मॉनिटरिंग अभी तक सिर्फ कुछ 81 ‘जिलों’ में की गयी ! इसे विडंबना कहें या हास्यास्पद ! और जिन्हें इसकी ज़िम्मेदारी सौंपी गयी वो भी क्या करें उनके सामने तो बड़ा अच्छा ‘सैंपल ‘ पेश किया जाता है .हाइजीन की बात तो न ही करें तो बेहतर होगा क्यूंकि जो पैसा केंद्र सरकार दे रही है सबसे पहले तो ३.११ रुपये में कौन सा भोजन मिलता है –अरे हाँ इससे याद आया मिलता है न -हमारे कुछ सांसदों को १०-१२ रुपये में तो क्या १ रुपये में भी खाना मिल सकता है अगर भूख हो तो (इस पर एक संवाददाता सच में ढूँढने निकल पड़ा ऐसा स्पॉट तो पाया सारे दिल्ली में बस पार्लियामेंट कैंटीन में ५-६ रुपये में इडली और डोसा मिलता है !!) ;उस पर भी मिली-भगत से बीच के लोग मार लेते हैं मसलन छपरा वाली इस घटना में प्रिंसिपल साहिबा के घर से कई अनाज की बोरियां मिली जो बच्चों के लिए आई थीं !
अब बात करते हैं कि सरकार सच में इस योजना के हर पहलू पर कैसे सोच सकती थी –कुक्स जो न सिर्फ निरक्षर बल्कि अप्रशिक्षित हैं,उन्हें -मध्यप्रदेश की बात की जाए तो सिर्फ 1000 रुपये मिलते हैं मेहनताने के तौर पर ,अन्त्योदय वाली निराश्रित महिलाओं को चखने की ज़िम्मेदारी दी गयी थी पर इन कुक्स और बाकी लोगों की सांठगांठ से इनका ‘भाव’ बढ़ जाता है और वो उन्हें ऐसा नही करने देती हैं –आदि आदि अब ये बताइए कि इतने कम राशि में कोई कैसे आज की मंहगाई में खाना बनाएगा ? ऐसे प्रश्नों के जवाब जनता मांग रही है !!
अगली खबर सुप्रीम कोर्ट ने बारों पर लगे बैन को हटा दिया ! मेरे अनुसार बिलकुल ठीक किया क्यूंकि उस वक़्त २००५ में वेश्यावृत्ति और मानव –तस्करी की आशंकाओं के चलते लगाये गये इस प्रतिबन्ध की वजह से सचमुच कुछ ७५००० बार-डांसर्स सड़कों पर आ गयी थीं और सच में मजबूरन उन्हें वही धंधा अपनाना पड़ा ,कुछ ने अपनी जान ले ली –सरकार ने इन्हें तो रोक दिया पर बड़े बड़े होटल्स में आज भी यह सब चलता है –जो सरकार अपने लोगों को न सिर्फ बराबरी का हक देती है ,उसे आजीविका दिलाती है,वही उससे वो अधिकार खुद छीन रही है सो कॉल्ड महिलाओं की सुरक्षा के लिए –जानते हैं हम कितनी गंभीर है ये हमारे लिए! अगर आप उन बार डांसर्स की इन आठ सालों की कहानियाँ सुन लेंगे तो आप भी सरकार के इस दोगुले रवैय्ये के प्रति तकलीफ और घृणा से भर उठेंगे !! सरकार न सिर्फ अभी बल्कि बाल श्रमिकों के मामले में भी उन्हें दलदल से निकाल कर सड़कों पर मरने के लिए छोड़ देती है ! क्या आजीविका का विकल्प देना नही चाहिए उसे?
जहाँ तक मैंने इस सन्दर्भ में पढ़ा है वो ये कि बार डांसर्स सिर्फ डांस करती हैं उनके अपने कायदे होते हैं –और जो भी अगर वेश्यावृत्ति के धंधे में अगर हैं भी तो बार से अलग –और अब इसी समाज के डबल स्टैंडर्ड्स (इससे कम कपड़ों में हम सभ्य लोगों की महफिलें सजा करती हैं तीन और पांच सितारा होटलों में )की वजह से उन्हें किसी नौकरी के लायक नही छोड़ा गया –और इस आदेश के बाद मजबूरी में अपनाया गया ये पेशा उनकी ज़िन्दगी की सबसे बड़ी भूल बन चुका था पर महाराष्ट्र सरकार अभी भी इस बारे में ये नही कि उनके पुनर्वास के लिए कुछ करती पर एक नया क़ानून ज़रूर बनाने का सोच रही है और इस बन को जारी रखने वाली है !!!
आखिरी खबर अमेरिका के स्नोडेन की –जो कब से रूस में रह रहे हैं –सिर्फ इसलिए कि उन्होंने अमेरिका के कई देशों और खुद अपने देश के लोगों की निजता का हनन होते देख उसकी जानकारी सार्वजनिक कर दी थी !!इस घटनाक्रम ने कई बातें सिद्ध कीं –जब भी कभी आप सरकार के खिलाफ आवाज़ उठाएंगे आपको दबाने की भरसक कोशिश की जाएगी ,दूसरा चूँकि राजनीति में फायदा सबसे बढ़कर होता है तो अभिव्यक्ति के अधिकार और विचारों की आज़ादी पर बड़ी बड़ी बातें करने वाले देश भी (हमारे भारत की तो क्या कहें –हम पर ही जब देखो तब सेंसरशिप का मुकदमा ठुकता रहता है तो क्या ही उम्मीद करते और देखिये बिलकुल अपने जैसा काम किया –मना कर दिया खुर्शीद साहब ने भी !)अमेरिका के खौफ से -स्नोडेन जब सभी देशों से उसे शरण देने की गुहार लगा रहे थे तब मुकर गये !! सिर्फ इसलिए की आप महाशक्ति हो विश्व के -आप एक इंसान की व्यक्तिगत आज़ादी नही छीन सकते वो भी गुप्त रूप से !!
तो इस बार ये खबरें ‘कचरा’ न ही बनें तो हमारे आज और कल दोनों के लिए बेहतर होगा क्यूंकि ये अधिकार हमारे वजूद से जुड़े हुए हैं और इन्हें पाने के लिए आवाज़ हमें ही उठानी होगी !!
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