विश्वास में विश्वास और संघर्ष
कभी कभी ज़िन्दगी में कोई एक चीज़ में हमारा गहरा विश्वास और कन्विक्शन होता है पर उसके लिए संघर्ष करते वक़्त हम बिलकुल अकेले होते हैं ,कोई भी नही . हमारे वो अपने भी नही जिनके बिना आज तक कोई भी लड़ाई नही लड़ी हमने . बेहद तकलीफदेह होता है . और बीच लड़ाई में लगने लगता है या फिर शुरू करते वक़्त ही कि अब नही हो सकेगा .यूँ अकेले .कैसे वो लोग जो तुम्हारे साथ हर वक़्त होते थे ,हर तकलीफ ,दुःख में या हर चुनौती में .जो उत्साह देते थे सदा .आज वो तुम्हारे इस विश्वास में विश्वास नही कर पा रहे !
पर सच बात यह है कि भले ही ये बात लिखने में खूब प्रेरक हो पर उतनी ही मुश्किल भी है . अपने कन्विक्शन की लड़ाई करना ग़लत तो नही . चाहे वो अपने आप में ही गलत क्यूँ न हो . सैल्फ मेड व्यक्ति कौन होता है फिर ? शायद ऐसे ही अकेले लड़ते लड़ते बना होगा वह यूँ ! अपने विश्वास को जब साबित करना पड़े तब घर परिवार दोस्त ,प्रेमी न भी साथ दें तो छोड़ देंगे क्या आप ?
शायद कुछ लोग हाँ कहेंगे और टूट जायेंगे .कुछ शुरू करेंगे पर बीच में हार जायेंगे और कुछ इन्ही मुश्किलों में खुद को तराशते हुए ,खोजते हुए और हाँ अगर वह विश्वास ग़लत है या ग़लत चीज़ में है तो वह भी एक सबक होगा .और हमारे भरोसे मज़बूत और इरादे दृढ होंगे ,अपनी लड़ाई करने की काबिलियत को लेकर ,अपने भरोसों पर .
और अगर यह भरोसा और उसको साबित करने के लिए संघर्ष तकलीफदेह तरीके से आपको लोग ,हालात और वैल्यूज़ को दुबारा गौर करने का मौका दे रहा हो तब भी आप इसे छोड़ देंगे ?
ये ख़याल एक टेलिविज़न शो ‘दहलीज़’ की सच को लेकर गहरे कन्विक्शन रखने वाली नायिका के सामने उत्पन्न हुए बेहद विपरीत हालातों से उपजे तो हैं पर वास्तविक ज़िन्दगी में भी तो यही होता है न ! काल्पनिक दुनिया में तो चलो कुछ दिन में संघर्ष ख़त्म हो जायेगा और जीत होगी पर वास्तव में कई बार ऐसी लडाइयां चालीस साल भी चलती हैं जैसे उत्तर प्रदेश के एक जांबाज़ पुलिस अधिकारी के नाम पर लगे दाग की उनके परिवार की .और कई तो अंतहीन भी रह जाती हैं जैसे सरबजीत की .
जब लोग न साथ खड़े हों तब खेल सारा आपका , आपकी बुद्धि , आपके इरादों ,आपकी हिम्मत पर ही टिका होता है . आप हार गये तो लोग तो खड़े ही हैं .बातें बनाने को .बाहर वाले इसलिए क्यूंकि वे तो हैं ही तैयार आपको हारता देखने को . और अपने इसीलिए क्यूंकि वे कितना भी जाए आपको प्रॉब्लम में पड़ा हुआ देख परेशान हो ही जाते हैं . भले ही साथ न दें .
और खासकर जब ये लड़ाई न्याय की , समाज पर गहरा प्रभाव छोड़ने वाली हो .जैसे जनहित याचिकाएं ,कितना कुछ आज नही हो पाता देश में अगर लोग सोचते कि कौनसा उन्होंने ठेका लिया है .तब पर वो अपने विश्वास के अलावा उस विश्वास पर टिके और उम्मीदों के लिए जुटे रहते हैं . मानसिक और आर्थिक हानि भी उठाते हैं . पर अनुभव पा जाते हैं और मज़बूत भी बनते हैं .
The Pursuit of Happiness फिल्म में पिता अपने बेटे से कहते हैं –अपना सपना हमें ही प्रोटेक्ट करना होता है . तो इसीलिए सच ,न्याय में विश्वास करने वालों को अपने सपने – एक बेहतर न्यायशील समाज के लिए और अपने आप के और अपने आप में भरोसे के लिए . यह ज़रूरी हो जाता है .
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