Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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नारीत्व

 

  नारीत्व !! 




हम सभी का जीवन औरत रुपी धुरी के इर्द -गिर्द घूमता है ! पर ' हम'  में से कुछ अहंकारी लोग  नही इसे स्वीकारना चाहते ! कोई बात नही ! हाल ही की तीन मुख्य घटनाओं ने मेरा ध्यान आकृष्ट किया -अमेरिका द्वारा निर्भया समेत दस अन्य बहादुर महिलाओं को 'वीमेन ऑफ़  करेज ' के अवार्ड देने की घोषणा की ; महाराष्ट्र में हाल ही में हुए दर्दनाक घटनाक्रम में तीन बच्चियों की तथाकथित रूप से  बलात्कार के बाद नृशंस हत्या और दिल्ली के एक सरकारी ' शिक्षा के मंदिर  ' विद्यालय में ७ साल की बच्ची के साथ दुष्कर्म ! .....बाद की दो घटनाओं का रूप एक ही है महिला के प्रति अपराध !!  सरकार  और  क़ानून  तो  बीमार कछुए की चाल से काम करते रहेंगे -भले ही मुझे इस बात पर क्षोभ हुआ हो कि क्यूँ भारत सरकार ने कभी देश में ऐसे कोई सम्मान क्यूँ नही दिए(लज्जित होकर सरकार ने रानी लक्ष्मी बाई अवार्ड दे तो दिया है खैर औपचारिकता के लिए !) -जो औरत के जिजीविषा को सलाम करते हों -?और इस बीच सैकड़ों ऐसे कई हादसे हो चुके पर कल की घटना ने तो फिर से दिल्ली को शर्मसार कर दिया -5 साल की बच्ची का तो अभी विकास शुरू भी नहीं हुआ होता है और यह घिनौनी हरक़त !! एक कली खिलने से पहले बर्बरता से रौंद दी गयी और इस बीच  दरअसल मैं तो भूल ही गयी थी कि आज रामनवमी भी मनाई जा रही है इस देश में ! इस देश में जितने ढकोसले करवाने हो लोगों से करवालो क्यूंकि बस यही है जो ये कर सकते हैं!! हास्यास्पद और विडंबना दोनों !! अपने बेटों को देवत्व न सही मानवीयता तो सिखा लो !! 

कभी कभी मुझे लगता है कि अब तो माता-पिता जो बचपन से अपने बेटों को ऐसे संस्कार नही देते ,उन्हें ऊंची कुर्सी पर बिठाकर रखते हैं उन्हें भी सज़ा मिलनी चाहिए क्यूंकि आपने वह कहानी तो सुनी होगी जब एक बेटा फांसी के फंदे पर चढ़ने के पहले माँ से कहता माँ मेरे इस गुनाह की तू भी कहीं न कहीं दोषी है अगर तूने बचपन में स्कूल से चुराई गयी चॉक को बचपना समझकर माफ़ न किया होता अगर तूने मुझे तब डांटा होता तो आज यह न होता .मेरे तो समझ से परे बात है यह इस देश में जब बेटा बाइक लेकर दिन भर बाहर घूमता रहता है -75 % तो ऐसा ही होता है कि माँ या पिता को कुछ पता ही नही होता -तो माँ कहती है- सुनता ही नही है क्या करें अब लड़के की जात है न !! क्यूँ नही सुनता क्यूंकि आपने उसे हमेशा खुली छूट जो दे रखी है .अब ये बताओ जहाँ तक स्पष्ट है उस के माता-पिता घर में ही रहते थे थे तो आखिर 4 दिन बेटा क्या कर रहा है -कहाँ है -कुछ जानना ज़रूरी नही समझा या फिर मेरे ही छोटे से शहर की एक घटना जिसमे माँ खड़े होकर दरवाज़े पर रास्ता रोक कर खड़ी थी की बेटा जो'' काम'' कर रहा है उसमें बाधा न आये वाला नजरिया अपनाकर उसकी चीखों को नज़रंदाज़ किया -अब ये तो वैसे भी इस जासूस मीडिया से नही बचेगा पर आगे ? आगे क्या ? कहते हैं जिंदा बच गयी -शुकर मनाओ -जिंदा किसे कहते हैं इंस्पेक्टर साहब !! ज़रा उसकी डेफिनिशन तो बताइए ! चलिए एक काम करते हैं आपकी बेटी के साथ यही घटनाक्रम दोहराते हैं फिर आप भी शुकर मानिएगा और बस बैठकर भगवान् से प्रार्थना करते रहिएगा !!

अभी तो बस सारे देश में एक ही ज़रुरत है -हर मतलब हरेक - विभाग-गैर सरकारी और सरकारी में डंके की चोट पर जोर शोर से -ठोस रूप से सिर्फ साम-दाम- दंड -भेद से लोगों को संवेदनशील और ऐसी अवस्थाओं में उन्हें जागरूक बनाना -चाहे जो भी हो -अगली बार इन्साफ का हक अब और किसी वजह से न मिले ऐसा न हो !

खैर दूसरी ओर सरस्वती ,काली और लक्ष्मी तीनों के रूप में आज स्त्री हर क्षेत्र में आसमान की ऊँचाईयाँ नाप रही हैं .मलाला युसुफजई -मात्र १४ साल की बच्ची जो पाकिस्तान में लड़कियों की शिक्षा के लिए निरंतर लड़ाई लड़ रही थी जो तालिबानियों को सहन नही हुई ....पर उसकी हिम्मत देखिये वो आज फिर से अपने संघर्ष के लिए उठ खड़ी हुई है तो इरोम शर्मीला जो 1२ साल से शांतिपूर्ण तरीके से आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर्स एक्ट के उल्लंघन का विरोध कर रही हैं -जुदा बात है कि हमारी सिरफिरी सरकार ने उन्ही पर आत्महत्या के प्रयास का मुक़दमा ठोक दिया है !! पर उनकी इसी हिम्मत के कारण उन्हें लोगों ने 'आयरन लेडी' की उपाधि दे दी है .कुछ दिनों पहले ही अखबार में एक पृष्ठ ऐसी ही आज की नारी के नाम पर था। जहाँ हरियाणा की एक खाप ने औरतों की सुरक्षा के नाम पर उनके  पुरुष के बिना निकलने पर रोक लगा दी वहीँ मुंबई की एक विशेष सुरक्षा एजेंसी की सुरक्षा गार्ड की भूमिका महिलाएं बखूबी निभाती हैं जिनसे पुरुष भी डरते हैं .तो मुंबई की लोकल की एकमात्र ' मोटर वुमन ' से लेकर भारत -चीन की सीमा पर बैठी इकलौती महिला आर्मी ऑफिसर जो अपनी इनफ़ोसिस की जॉब ठुकराकर वहां गयी हैं ....महिला शेफों ,मुंबई की ही महिला टैक्सी ड्राइवर्स के यूनियन तक का ज़िक्र था .ये तो शुरुआत है .कहते हैं जब किसी को जितना दबाया जाता है ,शोषित किया जाता है ....उसका गुबार और आक्रोश और बाहर आता है और आज की औरत ने तो हर उस जगह जाने की सोच रखी है जो पुरुष के वर्चस्व के क्षेत्र हुआ करते थे .

                   निर्भया के हौसले ने जहाँ औरतों के आवाज़ उठाने के हौसले को और बढाया है तो .आज शहीद पुलिस अधिकारी की पत्नी समाजवादी पार्टी के एक  मंत्री के खिलाफ आवाज़ उठाने से पीछे नही हट रही है. हाँ इन अपराधों से थोड़ी देर के लिए तकलीफ ज़रूर होती है जब हम अपनी ही बच्चियों ,मासूम कलियों को निर्ममता से कुचलते हुए देखते हैं ....पर न्याय पाने के रास्ते में आने वाली हर मुश्किल का सामना करने को अब तैयार दिखाई देती हैं आज की नारियाँ ! ये मिसालें हमें अपने हकों के लिए लड़ने को हिम्मत दे रही हैं .आज फिर कहीं मैंने पढ़ा कि  देश के ४९ लाख एक-सदस्यी परिवारों की मुखिया महिला है जिनमे तीन चौथाई ग्रामीण इलाकों की हैं ;पढ़कर थोडा अच्छा लगा .पर सच्चाई तो कडवी है .अब सरकारें तो आनी जानी हैं उनकी उम्मीद के सहारे अपने दामन पर लगे खून और आँखों के आंसुओं को पड़े पड़े खुद ही सूखने देने से बेहतर है -आंसुओं को पोंछकर अपने और अपनी बच्चियों के अरमानों और आत्मा के बलात्कार का बदला खुद लेना सीखें .खुद को शारीरिक रूप से और मानसिक रूप से सशक्त बनाएं .मेरी मानिए तो मानसिक मजबूती सबसे बढ़कर है. ऐसे कु -पुरुष  उनके खौफ के आगे मिमियाने वाली महिलाओं को शिकार सबसे ज्यादा बनाते हैं . क्यूंकि कोई भाई,बॉयफ्रेंड ,पति,मित्र आपकी रक्षा नही कर सकता हमेशा ! सरकार तो राजनीति की गोटियाँ खेलने में बड़ी मसरूफ रहती है वैसे भी -निर्भय के नाम से फण्ड तो दे दिया बजट में देखते हैं .-उसी निर्भया और देश की सभी निर्भयाओं  को वास्तव में कितना लाभ /इन्साफ का फायदा मिलता है !! 

मैं काफी दिनों से एक बात सोच रही थी कि एक बात -आज भी  बॉलीवुड में नायिकाओं को मुख्य नायकों की बराबरी का पारिश्रमिक नही दिया जाता और दूसरा - नायिका प्रधान फिल्में अभी भी क्यूँ गिनी चुनी हैं और क्यूँ उसे करने के लिए सभी अभिनेत्रियाँ आगे नही आतीं ! क्यूँ एक कहानी या एक डर्टी पिक्चर और हो सकता है मेरे मस्तिष्क में फिलहाल और नाम अभी ना आ रहे हों पर कम ही हैं जो ऐसी सफल हुई जबकि ऐसी कई दबंग और सिंघम कई  उत्तर-कथाओं में आती रहेंगी जिसमें 'हीरो ' ढेर सारा एक्शन करके जनता को  आकर्षित करते रहेंगे ....अभी भी बॉलीवुड में क्यूँ हीरोइन को बस 'प्रेमिका' के ही रूप में देखना पसंद करते हैं लोग या फिर बात ऐसी है कि फिल्म उद्योग वाले  थाली में जनता को जो  परोसते हैं वे उसे धीरे धीरे पसंद करते हैं .तो क्यूँ न बदलाव लाया जाए -शुरुआत थिएटर और छोटे नाटकों के स्तर से किया जाए जहाँ औरत को सिर्फ 'आइटम गर्ल' के तौर पर मसाला जोड़ने के लिए नही ,'नए सशक्त ' चरित्रों के दम पर पहचाना जाए ! हाल ही में बढ़ते महिला -अपराधों के मद्देनज़र सेंसर बोर्ड ने कड़ी आपत्ति दर्ज की ऐसे 'आइटम डांस ' को लेकर जो जायज़ भी है. आप ही बताइए इंसान जो जन्म से प्रयोग करने में बेहद उत्साहित रहता है को जो फिल्मों में ऐसे ही एक लड़की को अश्लील तरीके से नाचते और लड़कों को असभ्य हरक़तें करता हुआ देखता है तो थिएटर से निकलने के बाद उसे प्रयोग करना ज़रूर चाहेगा !! अरे भाई ! भारत वैसे ही नृत्य और संगीत के खूबसूरत रंगों से रंगा हुआ सजीला देश है -उसके इन रंगों से  मनोरंजन के लिए उसे अपनी   सीमा  लाँघने  की कोई ज़रुरत नही !

           .एक लड़की होने के नाते मैं 'अपनी 'आज़ादी के पूरी तरह समर्थन में हूँ पर अगर कला स्वतंत्रता की जगह स्वच्छंदता सिखाये और सामाजिक प्राणी होने के नाते अपने फर्जों को भुला दे तो फिर वह कला सर्वथा रास्ता भूल गयी है . इन आइटम गीतों के खिलाफ मोर्चा लेकर खड़ा होना मेरा उद्देश्य नही है मेरा पर इनसे औरत को उपभोगी वस्तु के  तौर पर देखने का नजरिया बेशक बढ़ता ही है .क्यूँ एक भी चैनल देश के गाँव और औरत  को केंद्र में लाकर खबरें नहीं  लाता जबकि 'लेक्मे फैशन शो' ( सिर्फ एक उदाहरण है यह तो :) )की कवरेज तो निहायत ज़रूरी होती है .!! .ऐसे फैशन शो जो फैशन के नाम पर स्त्री को वस्तु की तरह देखने पर मजबूर करें उनकी कोई ज़रुरत नही है इस पहले से ही बेहद गंभीर समस्याओं से जूझते हमारे समाज को ....विडंबना है न कहीं  किसी स्त्री के पास अपने महीने के उन तकलीफदेह दिनों में भी तन ढँकने  को वस्त्र कम हैं और कहीं हैं तो ये फैशन का प्रपंच !!  

औरत के हर रूप -एक बच्ची ,बहन ,माँ ,पत्नी , प्रेमिका ,भाभी ,मित्र -हर रिश्ते को देने के लिए उसके पास ढेर सारा प्यार और स्नेह छुपा होता है . जो भी रिश्ता निभाती है दिल से निभाती है .पर उसके इस नाज़ुक दिल को ,आत्मा को कमज़ोर मान छलनी करने का नापाक  काम करते हैं वही प्रेम को पाने वाले भी -घर से लेकर स्त्री कार्यस्थल हर जगह अपनों से ही धोखा खाती है . एक बार चर्चा छिड़ी थी की - एक सी आय वाले पति पत्नी में से पहले कौन नौकरी छोड़ेगा -अगर ज़रूरत पड़ी तो जायज है औरत ही करती हैं अक्सर ये त्याग जो आजकल शायद उतना सही नही है .तो बात उसके दोनों -घर और बाहर के मोर्चे को बखूबी संभालने की है -जो वो करती भी है .पर आप उसकी काबिलियत पर विश्वास कीजिये ....बिलकुल निराश नही होंगे बल्कि बेहद गर्व होगा आपको उसपर ! 

औरत के सभी रूप गंभीर नही होते -उसके अन्दर छुपे छोटे शिशु को दरअसल बचपन से ही दबा दिया जाता है कि दूसरे  के घर जाना है ....तहजीब सीखो -पर उसका खिलखिलाना ,उसकी मासूमियत ,जिंदादिली ,ज़िन्दगी के हर छोटे बड़े लम्हे को खुलके जीने का ज़ज्बा ,बारिश और फूलों की भीनी खुशबुओं से प्यार ,इठलाना ,शर्माना , रूठना ,मनाना , खुल कर मोहब्बत करने का ज़ज्बा ,पायल के घुंघरुओं की छनछन   ,चूड़ियों की खनखन सब उसे और भी ख़ास बना देते हैं . रंगों की तो कबकी ज़िन्दगी से रुखसती  हो गयी होती अगर ज़िन्दगी में औरत नही होतीं ...उसकी छोडिये ..माँ नही होती तो ज़िन्दगी ही कहाँ होती जनाब !! 

तो  मजदूर से लेकर प्रशासन की  बागडोर संभालती ,नवजात कन्या शिशु जिसे इस दुनिया में औरत होने के नाते बेहद संघर्षशील जीवन जीना है ,नौकरीपेशा से लेकर घर का मोर्चा संभालती ,बिज़नेस से लेकर पुलिस ,अंतरिक्ष से लेकर एवरेस्ट , किचन से लेकर बॉक्सिंग ,लेखन से लेकर तीरंदाजी  में  उड़ान भर रही हर महिला को सलाम !! और अगर आप इन  श्रेणी में नही आती  -आम महिला हैं तो और भी काबिले तारीफ़ हैं- अधिक मुश्किलें आपका रास्ता रोकती हैं पर आप  लडती हैं -क्यूंकि हर महिला ख़ास है क्यूंकि वो जन्मती है -रिश्तों को ,विश्वास को,ज़ज्बात को ,मूल्यों को , बुद्धि को, समाज को ,विचारों को और इस गढ़ती है इस प्यारे संसार को !! 


संपूर्ण नारीत्व को प्रणाम !! :) :) 

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