हुआ फिर वही जो हर बार होता आया है।
लहराता तिरंगा भी देखो ठहरा नजर आया है।
बंजर ज़मीन से भी क्यों आंसू निकल आया है।
भारत माँ के सीने पर फिर एक नया ज़ख्म नजर आया है।
हर हिन्दुस्तानी सिर झुका दिखाई देता है,
अपने ही देश में क्यों लाचार दिखाई देता है।
भोग्या नहीं है नारी उनको इतना समझा दो,
वही तो इंदिरा वही तो कल्पना वही तो लक्ष्मी बाई है।
देश का परचम भी लहराएंगे,विश्व गुरु फिर बन जाएंगे।
पर उन्नति बाद में पहले हर नारी यार सुरक्षित हो।
बहुत हो चुका बंद हो।अबकी बार ऐसा यार हश्र हो।
प्रहार बनकर सुदर्शन चक्र हो।
भारत माँ का रूप विकराल हो।
हर हिन्दुस्तानी आँख लाल हो।
बन रणचंडी अवतार दरिंदगी का नाश हो।
हँसता रावण है तो राम का धनुष हो।
पीछे पड़ा खिलजी है तो
फिर राजपूती तलवार हो।
वहशी का वहशीपन भी चीखे अब
तो ऐसा यार कमाल हो।
सात पीढ़ियों तक हर दरिंदा काँप उठे ,
किया ना जो पहले इतिहासों में अबकी बार हो।
हैवानियत काबू ना थी तो हैवान सा ही अब सलूक हो।
अबकी बार फिर ना यार ऐसी कोई निर्भया हो।
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