कुछ सवाल अपनों से
बोलो ना..
.क्या हम खुले पंखों से उड़ान भरेंगे
या समाजिक बंधनों में बँध कर रह जाएंगे?
क्या तुम भी मुझे एक ख्याल सा आजाद अपनाओगे
या एक सोच सा कैद रखोगे ?
क्या तुम भी औरों की तरह सिर्फ मेरे लफ्ज़ समझोगे
या खामोशी भी पढ़ लोगे ?
क्या तुम भी मेरे सपनों को कल्पना मात्र सा पागलपन कहोगे
या पूरा करने का जज्बा साझा करोगे ?
क्या तुम भी मेरी बातों को बस सुन लोगे
या उनकी गहराइयों में भी झांक लोगे ?
क्या तुम भी मुझे हमेशा सच्चाई से रूबरू करोगे
या कभी अपनी मृगतृष्णा में भी जीने दोगे ?
क्या तुम मुझे आदर्शो पर चलने के लिए प्रेरित करोगे
या अपनी राह से डगमगाने दोगे?
क्या तुम मुझे खुला छोड़ दोगे
या धारणाओं से बनी जंजीरों में जकड़ लोगे ?
क्या तुम मेरी अधूरी सी कहानी को भी पूरा करोगे
या बस एक नए किरदार में मुझे ढ़ाल दोगे ?
क्या तुम मेरी राह आसान करोगे
याकाँटों की भांति उनमें बिछ जाओगे ?
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