Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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सोचती हूँ क्या लिखूँ

 

सोचती हूँ क्या लिखूँ…
श्रृंगार पर कोई गीत लिखूँ या वतन पर मेरी जान-निसार लिखूँ।
पाठशाला जाते बस्तों की कथा लिखूँ या धंधे पर लगे नन्हें करों की व्यथा लिखूँ।
चहकती बेटी की हँसी से खिलखिलाता घर लिखूँ या कूड़ेदान में फेंकी नवजात का भविष्य लिखूँ।
पहली बारिश के मनमोहक जज़्बात लिखूँ या टपकता कोई छत लिखूँ।
लालच की भूख लिखूँ या जरूरत की चीज़ लिखूँ।
चढ़ते यौवन का गुदगुदाता एहसास लिखूँ या मातृभूमि की पुकार लिखूँ।
केसरिया बाने की हुंकार लिखूँ या जयचंद गद्दार लिखूँ।
आजाद भगत का स्वप्न लिखूँ या हिंद का बुरा हश्र लिखूँ।
गांधी के सपनों का खिलता परिवेश लिखूँ या भ्रष्टाचारी का भ्रष्टाचार लिखूँ।
कलाम नेहरू की यारी लिखूँ या मजहबी कत्लेआम भारी लिखूँ।
सरदार पटेल महान लिखूँ या संविधान लाचार लिखूँ।
मुल्क की शान लिखूँ या कुर्बान शहीद की जान लिखूँ।
सोचती हूँ क्या लिखूँ…

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