दक्षिण की विद्रोहिणी संत कवयित्री अक्क महादेवी पर विस्तार से काम करने का मेरा प्रस्ताव रजा फाउंडेशन ने स्वीकार कर लिया है। आदरणीय अशोक वाजपेयी जी के प्रति आभार। वाजपेयी जी एक बड़े कवि तो हैं ही, वे एक सांस्कृतिक- सामाजिक चिंतक की भूमिका का भी निर्वाह करते दिखायी पड़ते हैं। इस रास्ते में जहां भी राजनीति आती है, उससे पूरी मजबूती के साथ टकराते हैं। मुझे पूरा विश्वास है कि रजा फाउंडेशन के सहयोग से मैं यह सार्थक काम सफलतापूर्वक पूरा कर पाऊंगा।
अक्क महादेवी 12 वीं शताब्दी की कन्नड़ संत कवयित्री हैं। वे अल्लमप्रभु और वसवन्ना द्वारा शुरू किये गए क्रांतिकारी 'वीरशैव' आंदोलन की प्रमुख स्तम्भ रहीं। कन्नड़ समाज में उन्हें एक विद्रोहिणी कवयित्री की तरह जाना जाता है। उन्हें मुश्किल से 25 वर्ष का जीवन मिला लेकिन इस अल्पावधि में ही कर्नाटक के सामाजिक जीवन में महत्वपूर्ण परिवर्तन उपस्थित करने में उन्होंने अपनी विरल भूमिका निभाई। दक्षिण में पांचवीं-छठीं शताब्दी में शुरू हुए भक्ति आंदोलन में आंडाल के बाद अक्क महादेवी का नाम बहुत आदर के साथ लिया जाता है। उन्होंने तत्कालीन पितृसत्तात्मक समाज और ब्राह्मणवाद को गंभीर चुनौती दी, समाज में गहराई तक जड़ जमा चुके जातिवाद, ऊंच-नीच और अस्पृश्यता की दीवारों को ढहाने में अपना अमूल्य योगदान दिया। उनके जीवन और संघर्ष से प्रेरित होकर बड़ी संख्या में नीची जातियों की स्त्रियाँ बराबरी के अधिकार मांगने घरों से बाहर निकल आयीं। उनमें से अनेक बाद में बड़ी कवयित्रियों के रूप में भी जानी गयीं। स्वयं महादेवी ने सैकड़ों वचन कहे। यह एक बड़ी परिघटना थी कि ऐसे समय में जब कर्नाटक के विद्वत्समाज में संस्कृत का प्रभाव था और कन्नड़ भाषा भी अपनी शास्त्रीयता से बोझिल थी, वीरशैव संतों और भक्तों ने लोकभाषा में अपने वचन कहे। इस नाते उनकी बातें बहुत सहजता के साथ व्यापक आम समाज तक पहुँची और बहुत कम समय में वीरशैव आंदोलन सामाजिक और आध्यात्मिक जागृति के एक बड़े आंदोलन में बदल गया। इस पूरे दौर में अक्क महादेवी का बहुत महत्वपूर्ण योगदान था। इसीलिए अल्लमप्रभु और वसवन्ना जैसे भक्त कवियों ने उन्हें 'अक्क' यानी बड़ी बहन के रूप में स्वीकार किया। महादेवी के लगभग 400 वचन उपलब्ध हैं। हालाँकि वे मीरा से चार सौ साल पहले हुईं थीं लेकिन उनके वचन भक्ति के अलावा साहित्यिक दृष्टि से भी बहुत गहन और कलात्मक हैं। 20 वर्ष की उम्र में ही एक सुन्दर और युवा लड़की अपने पति को और उसके राजनिवास को छोड़कर अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए निर्वस्त्र शिमोगा से कल्याण पैदल ही निकल गयी। यह दूरी मामूली नहीं आठ सौ किलोमीटर थी। उस समय के जड़ समाज में उसको किन असाधारण और कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ा होगा, पुरुषों की वर्चस्ववादी और कामुक नज़रों को उन्होंने किस तरह झेला होगा, कोई भी अनुमान लगा सकता है। उनके वचनों में उनका यह संघर्ष तो दिखता ही है, उनकी अप्रतिम काव्य-मेधा के भी दर्शन होते हैं। कन्नड़ समाज में एक महान सुधारक, कवयित्री और विद्रोहिणी के रूप में उन्हें आज भी बहुत सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है। शताब्दियों के बीच उन पर सैकड़ों कविताएँ लिखी गयीं, उपन्यास लिखे गए, नाटक खेले गए, फिल्में बनीं। लोक में वे आज भी गाई जाती हैं। वसव साहित्य पर, ख़ास तौर से महादेवी के वचनों पर अंग्रेजी में कुछ काम हुए हैं। ए के रामानुजन ने उनके वचनों का अंग्रेजी में बहुत सुन्दर अनुवाद किया है। उनकी पुस्तक 'स्पीकिंग ऑव शिवा' यूनेस्को के इंडियन ट्रांसलेशन योजना में स्वीकृत और पेंगुइन से प्रकाशित है।यह अब तक का सबसे प्रामाणिक अनुवाद माना जाता है।
आश्चर्यजनक ढंग से हिंदी की दुनिया अक्क महादेवी के जीवन और उनकी कविताओं से लगभग अपरिचित है। रामविलास शर्मा जी, केदारनाथ सिंह जी, अनामिका जी और गगन गिल जी ने पहल की है लेकिन हिंदी में उन पर विस्तार से बात अभी तक बात नहीं हुई है। मेरा मानना है कि महादेवी अक्क पर यह काम भक्ति साहित्य के अनछुए पहलुओं और दक्षिण भारत के एक क्रांतिकारी सामाजिक आंदोलन से हिंदी की दुनिया को परिचित करायेगा।
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