Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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बेगमपुर की ट्रेन

 

बेगमपुर की ट्रेन
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ट्रेन एक बियाबान में ठहर गयी है
सैकड़ों लोग ठहर गये हैं ट्रेन के साथ
दिन अस्त हुआ, रात आयी
रात भी ठहर गयी है 
बादल घिर आये हैं
जैसे आज नहीं बरसे तो कभी नहीं बरसेंगे
बच्चों के रोने की आवाजें आ रही हैं
पानी, ब्रेड, दूध कुछ भी नहीं बचा पास में
सबको सुबह अपने काम पर जाना है
लेकिन सुबह का कुछ पता नहीं
जब ट्रेन रवाना हुई थी
गार्ड बहुत बातें कर रहा था
यह नयी ट्रेन है, बिलकुल बदली हुई 
साफ-सुथरी, बुलेटनुमा, सुपरफास्ट  
सबको समय से पहले
मंजिल पर पहुंचा देगी
बहुत अनुभवी है ड्राइवर
हजारों किलोमीटर ट्रेन दौड़ायी है
गलती की कोई गुंजाइश नहीं
अब ट्रेन एक अनजान जगह पर खड़ी है
पता नहीं चल रहा
कौन सी जगह है
दिशाएँ गुम हो गयी हैं
सिर्फ अंधेरा है जो दिलों में 
खौफ की तरह बज रहा
खुसर- फुसर शुरू हो गयी है 
कुछ यात्री इधर- उधर टहल रहे हैं
सुनसान की आवाज सुनने 
की कोशिश कर रहे हैं
एक आदमी चीख रहा है
वह गार्ड से उलझ गया है
वह किसी बड़े नुकसान की बात कर रहा है
वह ललकार रहा है सभी यात्रियों को
कुछ लोग दूर से देख रहे हैं तमाशा
कुछ उसके पीछे खड़े हो गये हैं 
कुछ उसकी आवाज में
आवाज मिलाते हैं फिर चुप हो जाते हैं
असमंजस पसरा हुआ है
ट्रेन निस्तेज हो गयी है
बत्तियां बुझी- बुझी सी है
गार्ड को कुछ पता नहीं है
लेकिन वह सब कुछ 
पता होने का नाटक कर रहा है
दावा कर रहा है कि वह न होता
तो कोई बड़ा हादसा हो सकता था
रह-रह कर हाथ लहरा कर फतवा दे रहा है
बस अभी ट्रेन चल पड़ने वाली है
जिनको बेगमपुर जाना है
बैठे रहें चुपचाप
मैं बहुत इंतजार कर चुका हूँ
बार-बार हिम्मत करके उठता हूँ लेकिन 
हर बार यह सोचकर बैठ जाता हूँ
कि बेवजह क्या उलझना
वक्त सब ठीक कर देगा
ज्यादातर लोग इसी तरह सोच रहे हैं
तमाम तो सो गये हैं खर्राटे लेते हुए
एक आदमी नीचे उतर गया है
अपने सामान के साथ
वह समझ गया है कि अनिश्चितता में 
बैठे रहने और इंतजार करने से 
बेहतर है चल पड़ना
एक और आदमी है जो ट्रेन के भविष्य के 
बारे में इस तरह बात कर रहा है
जैसे देश के भविष्य के 
बारे में बात कर रहा हो
वह बहुत गुस्से में है
उसकी देह से चिनगारियां फूट रही हैं
उसे देखकर लगता है कि वह इसी तरह बोलता
रहा तो सुबह हो न हो यह रात
जरूर धधक उठेगी 

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