Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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भावुक मन अब नहीं चाहिए

 

जो धोखे से नहीं उबरें हैं, खास नहीं कुछ उन्हें चाहिए।
काँटों की इस सजी सेज में, फूल गुलाब का नहीं चाहिए।
प्यार में अब दीवानापन, और अपनापन भी नहीं चाहिए।
झूठी बातों से बहलाना, और आश्वासन अब नहीं चाहिए।
कही गई बातों का मतलब, और नई परिभाषा नहीं चाहिए।
उन्हें आग लगाने वालों से, मरहम की पट्टी नहीं चाहिये।
दिल के टूटे दरवाजे में उनको, नई खिड़की अब नहीं चाहिए।
पत्थर दिल पिघलाने वाला, उन्हें भावुक मन अब नहीं चाहिए।

 

 

 

द्वारा
सुधीर बंसल

 

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