Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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बिना रंग की होली

 

होली का दिन ऐसा आया, उसे कोई भुला नहीं पाया।
मैं आई थी रंग लगाने, वह रंग चुराने आया।
लाल रंग ले लिया गालों से, काला ले लिया बालों से।
रंग गुलाबी ले लिया होठों से, सफ़ेद ले लिया खालों से।
सुर्ख रंग आँखों से ले लिया, रंग सुनहरी काजल से।
पीला रंग शर्म का ले लिया, नीला ले लिया आँचल से।
हरा रंग ले लिया झुमके से, रंग अदा का ठुमके से।
सारे रंग चुरा कर मेरे, उसने प्रेम का रंग मिलाया।
हल्का नीला रंग बताकर, मुझे आसमान बस दिखलाया।
अपने ही रंग में रंग ली उसने, मैं भी हो गई रंग रंगोली।
मैंने रंग लगाना चाहा, उसने बिना रंग की खेली होली।

 

 

 

सुधीर बंसल

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