द्वारा
सुधीर बंसल
मैंने एक तीर से ही कई निशाने साधे हैं|
मेरा कायल तब तू होगा, जब घायल हो जायेगा|
मरहम मैं ही लगाऊंगा, मरने भी न दूंगा तुझको|
ऐसी चाल चली है मैंने, तू मेरे ही गुण गायेगा|
याद रखेगा मुझको ही, अपना सब कुछ भूल जायेगा|
ऐसे दोस्त मेरे बहुतेरे, कैसे उनको भूलूँ मैं|
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