द्वारा
सुधीर बंसल
पहली बार विपत्ति से, संभल नहीं पाया अब तक|
एक विपत्ति आने से ही, दहल गया था अन्दर तक|
जब साथ किसी ने नहीं दिया, तब हिम्मत शनै: शनै: आई|
जब अम्बार लगा विपत्तियों का, धीरज भी मैंने रखना सीखा|
आज इन्ही विपत्तियों से, मैंने जीवन जीना सीखा|
संघर्षों में रहना सीखा, काँटों में राह बनाना सीखा|
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