द्वारा
सुधीर बंसल
संभल संभल कर चलने से, दूर कहीं न जा पायेगा|
समय बहुत लग जायेगा, और हर पल ठोकर भी खायेगा|
एक भी ठोकर नहीं लगेगी, जब बेहोशी में जायेगा|
मंजिल पर बैठा पायेगा, जब होश मैं तू आ जायेगा|
मंजिल तक पहुंच नहीं पाया, जब संभल संभल कर चलता था|
पर जब पागलपन से भागा, मंजिल को पीछे छोड़ आया|
अब मंजिल की बात नहीं करता, मंजिल बहुत मिलेंगी आगे|
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